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________________ तीसरा अध्याय। ४५ यह सब ऐसा हुआ है । अस्तु, अब आपसे यही नम्र प्रार्थना है कि आप हमारे ऊपर ठंडे जलकी भॉति ही ठंडे हो जाइए। इसके बाद अकंपनने अर्ककीर्तिको बहुत सम्पत्ति दी और लक्ष्मीमती नाम पुत्रीका उसके साथ ब्याह कर दिया। इस तरह अकंपन बड़े आदरके साथ अर्ककीर्तिको सन्तुष्ट कर और हाथी पर चढ़ा बहुत से राजों महाराजों सहित उसके देशको रवाना कर दिया; एवं और और राजोंको भी हाथी घोड़े आदिकी भेंट द्वारा सन्तुष्ट कर उन्हें विदा दी। वे भी सव अपने अपने नगरको चले गये। इसके बाद बड़े भारी ठाट-बाटके साथ वह नागकुमार आया और उसने जयशील जयकुमारके साथ भली भॉति सुलोचनाका विवाह करवाया । देखो, यह सव पुण्यका ही माहात्म्य है जो देवता-गण भी सेवामें आकर उपस्थित हो जाते है। इसके बाद जयने अकंपनकी सम्मतिसे रत्न आदि भेंट देकर सुमुख नाम एक दूतको चक्रवर्तीके पास भेजा । वह गया और चक्रवर्तीके सामने रत्न आदि भेंट रख कर तथा उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम कर नम्रता-पूर्वक बोला कि प्रभो! अकंपन महाराज आपके डरसे आपको यह जताना चाहते है कि मैंने स्वयंवर विधि करके जयकुमारको अपनी सुलोचना नाम कन्या दी है । स्वयंवरमें आनेकी कुमारने भी कृपा की थी और जब कन्याने जयके गलेमें वरमाला डाली तव उन्होंने अपनी सम्मति भी प्रगट की थी। पर पीछेसे न जाने किसी पापीने कुमारके कान भर दिये, जिससे वे क्रुद्ध हो गये और उन्होंने युद्ध छेड़ दिया । वह सब हाल श्रीमान्ने अवधिज्ञान-चक्षुके द्वारा प्रत्यक्ष ही देखा है । हे प्रभो ! अब जो कर्तव्य हो सो कीजिए, जिसमें हमारी अर्थ-क्षति न हो और हमें क्लेश भी न पहुँचे; एवं हम मारे न जायें। इस प्रकार दीनता भरे वचनों द्वारा नम्र निवेदन कर चुकने पर दूत तो एक ओर बैठ गया और परचक्रको भय देनेवाले चक्रवर्तीने उत्तरमें यों कहना शुरू किया कि अकंपनने ऐसे नम्र वचनोंको लेकर तुम्हें व्यर्थ ही भेजा। क्योंकि वे बड़े हैं, अतएव मेरे लिए आदिनाथ प्रभुसे कम नहीं हैं। जिस तरह आदिनाथ प्रभु मोक्षमार्गके प्रवर्तक गुरु हैं, दानकी प्रवृत्ति करनेवाले श्रेयान्स राजा है तथा चक्रवर्तीपनेका मैं अगुआ हूँ उसी तरह वे भी तो स्वयंवर-विधिक विधाता है-चलानेवाले हैं। यदि आज वे न. होते तो स्वयंवर-विधिको कौन चलाता, यह बात तो निश्चित ही है । यहाँ भोगभूमि
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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