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पाण्डव-पुराण । आये । प्रायः तीन समुद्रके भीतर भीतरके सभी राजा-गण वनारसमें आ उ स्थित हुए; एवं समय पर स्वयंवर मंडपमें अपने अपने योग्य स्थानों ५
आ विराजे। ___उधर सुलोचनाने स्नान आदिसे निवट कर सुन्दर सुन्दर वस्त्र और गहनेगॉठे पहिने, तथा सिद्ध परमात्माकी पूजा कर उनकी आसिकाको मस्तक पर चढ़ाया। इसके बाद महेन्द्रदत्त नाम कंचुकी उसे रथमें बैठा कर स्वयंवर मंडपमें लाया। सुलोचना अपने रूपसे रतिको भी नीचा दिखाती थी। इस समय सुप्रभा देवी सहित अकंपन महाराज भी वहाँ आये और वे एक ओर स्वयंवर मंडपके पासमें ही बैठ गये । जान पड़ता था कि इन्द्राणीको साथ लेकर इन्द्र ही रवर्गसे स्वयंवर देखनेको आया है । इनके सिवा चतुरंगी सेना और छोटे भाइयोंको साथ लेकर हेमांगद भी वहाँ आ पहुँचा । हेमांगदका स्वच्छ हृदय प्रीति और प्रमोदसे खूब भर रहा था। थोड़ी ही देरमें सुलोचनाका स्थ मंडपमें आ पहुँचा । कंचुकीने रथको रोका । सुलोचना रथसे उतर कर मंडपमें आई। इसके बाद जब सुलोचना वरमाल हाथमें ले पतिवरणको चली तब कंचुकीने उन विद्याधर राजोंको दिखा कर सुलोचनासे कहा कि पुत्री! यह नमिका पुत्र सुनमि है। यह दक्षिण श्रेणीका राजा है । यदि तुम चाहो तो इसे वरो। यह · सुनमिका पुत्र सुवन है। यह उत्तर श्रेणीका राजा है। इस तरह उसने क्रमशः सभी विद्याधरोंका सुलोचनाको परिचय कराया । इसी प्रकार और और सभी राजों, महाराजोंका परिचय देता हुआ वह सूरजकी प्रभाके समान प्रभावाले भरत चक्रवर्तीके पुत्र, गुणोंके भंडार कुमार अर्ककीर्तिके पास पहुंचा । वहाँ जा उसने सुलोचनाको उनका परिचय दिया। पर वह अर्ककीर्ति आदि सभी राजोंको छोड़ती हुई अन्तमें किसीसे
भी नहीं जीते जानेवाले जयकुमारके पास पहुंची, जिस तरह कोयल वसन्त "ऋतुमें और और सभी वृक्षोंको छोड़ कर आमके पेड़ पर जा पहुंचती है । सुलोचनाको जयमें आसक्त-चित्त देख कंचुकी वोला कि पुत्री ! ये जगत्मसिद्ध जय महाराज हैं । सोमप्रभ महाराजके पुत्र है । इनका सौदर्य वचनातीत है । कामदेवके क्सौंदर्यसे भी बढ़ा-चढ़ा है । देखती तो हो, हाथके कंकणको दर्पणकी जरूरत ही
क्या है। उत्तर भारतवर्षमें इन्होंने मेघेश्वर देवोंको जीत कर जो सिंहनाद किया था , गीतह मेघेश्वर देवतोंके शब्दको भी जीतता था। उस समय खुश होकर भरत चक्र- .