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पाण्डव-पुराण।
जीवन पर पाप-कर्मके अधीन हो ये जीव क्यों नित्यताका विश्वास करते हैं; और हमेगा उसको अपनी सम्पत्ति समझ कर संसार-समुद्रमें गोते लगाया करते हैं। इस प्रकार सोच विचार कर आत्माका अनुभव करनेवाले उन प्रभुने भरतको बुला उन्हें भारतवर्षका राज दिया; वली वाहुवलीको मनोरम पोदनापुरका राज-पाट संभलाया तथा अपने और और पुत्रोंको और और देशोका अधिपति बना आप निश्चिन्त हो गये । इसी समय देवता-गण आये और प्रभुको स्नान-भूपणसे सजा कर, पालकीमें सवार कर वनको ले चले । इस वक्त भॉति भाँतिके भूषणोंसे विभूषित आदि प्रभुके साथ भरत आदि हजारों राजा भी थे। जंगलमें जा प्रभुको उन्होंने वहाँ एक बड़के वृक्षके नीचे विराजमान किया। इसके बाद प्रभुने केशलोंच आदि क्रियाओंको करके चैत वदि नौमीके दिन जैनेन्द्री दीक्षा धारण की ।
इसके बाद उन निष्पाप प्रभुने छः महीनेके लिए योग धारण किया और उपवासोंसे युक्त तथा संसार-द्वारा सेवित वे प्रभु उस वक्त तेजो-मय हो गये । उनका तेज सव और फैल गया। भगवान तेजके पुंज और संसारके लिए दर्शनीय थे । जब योगका समय समाप्त हुआ तब प्रभुने वहाँसे चल कर वहुतसे देशों में, नगर नगरमें, घर घर विहार किया; जैसे एक एक तारागणके पास चन्द्रमा विहार करता है । परन्तु उन्हें कहीं भी पारणा करनेका योग न मिला। मिले कहॉसे, उस वक्त सारे संसारमें कोई आहार देनेकी विधि ही न जानता था। 'जहाँ जहाँ प्रभु जाते थे वहाँ वहॉके लोग हर्षके भरे दौड़ दौड़ कर उनके पैरों पर पड़ जाते थे। तथा कई लोग प्रभुकी मेंट करनेको उत्तम उत्तम चीजें-घोड़ा, हाथी, रत्न वगैरह-लाते थे; कन्या, अन्न और वस्त्र ले-ले कर प्रभुके आगे आते थे; एवं कोई निर्दोष भूपण, आसन, शयन और सुगन्धित पुप्प ला-ला कर उनके सन्मुख खते थे । इस तरह प्रभुने मौन धर कर इर्यापथ शुद्धिसे छः महीने तक विहार केया, पर कही भी उन्हें आहारका योग न मिल सका । इसके बाद वे विहार करते - दरते हस्तिनागपुर आये । हस्तिनागपुरके राजा श्रेयान्स थे । वे बड़े भाग्यशाली दाजा थे । रातका समय था। वे निःशंक हो शय्या पर सुखसे सोये हुए थे। "उस वक्त उन्होंने स्वममें सुमेरु पर्वत, कल्पवृक्ष, चॉद, मूरज तथा गहरा समुद्र
खा । स्वम देखनेके बाद वे जागे और उन्होंने सव स्वप्नोंको जैसाका तैसा भीमप्रभ महाराजसे कह सुनाया। सोमप्रभने उत्तरमें कहा कि सुमेरुको देखनेसे चा, कल्पवृक्षको देखनेसे उसीके समान दाता, चन्द्रमाके देखनेसे उसके मान ही संसारको शान्ति देनेवाला और सुरजको देखनेसे प्रतापी एवं समुद्रको