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________________ दूसरा अध्याय । और केयूरोकी अद्भुत ही शोभा थी। उसके गलेका हार मनको मोहनेवाला था। उसके हाथों की उँगुलियोंमें सुन्दर अगूठियाँ और कमरमें मनोहर करधनी थी । बहुत क्या कहा जावे वह उपमा रहित थी । उसको किसी भी वस्तुकी उपमा नहीं दी जा सकती थी। उसका मुह चन्द्र के जैसा और नेत्र मृगके जैसे थे। मस्तक आधे चॉदकी नॉई था तथा पके हुए नारियल के समान स्थूल और सुन्दर उसके कुच थे। सारांश यह कि उसकी शोभा सव तरहसे बढ़ी-चढ़ी हुई थी। उसको देख कर ऐसा थान होता था कि मानों ब्रह्माने पहले संसारकी रचना कर खूब ही अनुभव किया और पीछेसे इसकी रचना कर स्त्रियोंकी सुन्दरताकी सीमा ही वॉध दी है। सोममम और लक्ष्मीमतीके बड़े पुत्रका नाम जय था । वह रूपशाली और शत्रुदलका घातक था; विजय-लक्ष्मीका पति था । अधिक क्या कहा जाय वह साक्षात् जयकी मूर्ति ही था। भगवान आदिनाथ इस समय पृथ्वीतल पर नीतिका प्रचार कर रहे थे। उन्होंने रत्न आदि धनकी खान पृथ्वीको सुधा-मयी बना दिया था, उसमें सब जगह सुख फैला दिया था। वे प्रजाका शासन करते हुए अपूर्व शोभा पाते थे। एक समय इन्द्रकी आज्ञासे गंधर्व-सहित लीलांजना नामकी एक गुणवत्ती अप्सरा आई और प्रभुके आगे नृत्य करने लगी। वह बड़ी चतुराईसे हाव-भाव दिखाती थी तथा बिजलीकी भाँति चंचल थी। कभी आकाशमें जाती और कभी पृथ्वीपर' आती थी। एवं उसमें बहुतसे गुण थे। वह वीणा और वॉसुरीके विनोदसे चंचल होती हुई तालके अनुसार नृत्य करती थी, और कभी कभी सुन्दर आलाप भी लेती थी। इस प्रकार उस देवांगनाने खूब ही नाच किया। जिसको देख कर वहाँ बैठे हुए सभी सभासद चित्रमें लिखेसे रह गये । उनकी एक ऐसी विचित्र हालत होगई कि जिसका कहना वचनोंसे वाहिर है । दैवयोगसे नृत्य करते करते ही उसी वक्त उस नीलांजनाकी आयु पूरी होगई और वह देखते देखते ही अदृश्य हो गई । और नाच भी उसी समय बन्द हो गया जैसे जड़ोंके उखड़ जाने पर वृक्ष जाता है। उसके मरणको और और सभासदों तो न जान पाया, पर प्रभु जान गये इसके बाद विपत्ति रहित, निर्भय परिणामी प्रभु संसारसे विरक्त होकर उसकी पर यो विचार करने लगे कि संसारी जीवोंका जीवन चुल्लू के जलकी भॉति . धीरे विखर जानेवाला है। फिर आश्चर्य है कि मेघोंकी नॉई विला जानेवाले २
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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