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________________ पाण्डव-पुराण | ३० wwwww.MAAN रत्नोंकी बहुतसी राशियों लगी हुई हैं । अतः रत्नोको खरीदने के लिए वहाँ रुपया आदि मूल धन ले ले कर वहुतसे व्यापारी लोग आते है और रत्नोंकी जाँच करते हुए इधर से उधर डोलते फिरते देखे जाते हैं । उस समय रत्नों में उनका जो प्रतिविम्व पड़ता है और उन पर जो रत्नोंकी किरणें आकर पड़ती है उससे वे बहुत ही शोभा पाते है; जिस तरह अपने तेजसे विभूषित तारागण सुमेरुके इधर उधर घूमते फिरते सुशोभित होते हैं । वहाँके लोग कल्याण और मंगलकी सिद्धिके लिए जिनेन्द्र भगवानकी नित्य और अठाईके दिनोंमें पूजा किया करते हैं और कुदेवोंसे वे दूर रहते हैं । वहॉकी स्त्रियोंके मुहँ चाँदके समतुल्य हैं और वे ही रात में अँवरको हटा देते हैं, अत एव वहाँ रातमें जो दीपक जलाये जाते हैं वे केवल मंगलके लिए ही जलाये जाते है; अंधेरा हटानेको नहीं ! वहॉकी नर-नारियॉ पान खानेकी भारी शौकीन हैं, इस लिए वहाँके बाजारों में पानोंकी पीकोंसे इतना भारी कीचड़ मच जाता है कि उसमें यदि कोई मदोन्मत्त हाथी भी आकर फॅस जाय तो उसका वहाँसे निकलना कठिन पड़ जाता है । वहॉकी स्त्रियाँ अपने पॉवोंमें खूब ही कस्तूरी लगाती हैं जिसकी खुशबूसे उनके पास भौरोंके समुदायके समुदाय उड़े हुए चले आते है । और वे पुकार पुकार कर कामीजनोंको कहते हैं कि जिस तरह हम लोग स्त्रियोंके शुभ और सार चरण-कमलोंकी सेवा करते हैं यदि सुख चाहते हो तो तुम भी हमारी नॉई उनके चरण-कमलोंकी सेवा करो । वहाँ आदिनाथ प्रभुने दो राजों की स्थापना की । वे दोनो कुरुवंशके भूषण थे, उत्तम पुरुष और भाई भाई थे । उनके नाम थे सोमप्रभ और श्रेयान्स | सोम"मकी रानीका नाम लक्ष्मीमती था । वह चाँद जैसे सुन्दर मुहॅबाली और सुन्दरताकी सीमा थी; सती थी। वह सोममभ महाराजको प्राणोंसे भी कहीं अधिक प्यारी थी । लोग उसको सरस्वतीकी उपमा देते थे। क्योंकि जिस तरह सरस्वतीमें मनोहर दोंका विन्यास होता है और अलंकार आदि होते है उसी तरह वह भी मनोहर "दोंका विन्यास करती हुई चलती थी और भाँति भाँतिके अलंकार - गहनेठेसे विभूषित थी । सरस्वती में गूढ़ अर्थ और उत्तम उत्तम गुण होते हैं वह श्री गूढ़ अभिप्रायवाली थी और उसमें भी अनेक उत्तम उत्तम गुण थे । सरस्वती सनर्दोष और लोगोंको रमानेवाली होती है वह भी दोप- रहित और लोगों को सुख देनेवाली थी । तात्पर्य यह कि वह गुणों-सूतोंसे गोये गये और मनोहर रो हनों की चमकती हुई पिटारीसी जान पड़ती थी । क्योंकि उसका शरीर बहुत सुन्दर और चमकीला था । उसमें बहुतसे गुण और भूषण थे । उसके कुंडल
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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