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दूसरा अध्याय । वहाँके सभी लोग दानी है; धनी और ज्ञानी है तथा मान-मत्सरसे रहित और उत्तम ऋद्धियोंसे युक्त हैं। वे महिमाशाली हैं और एक दूसरेसे गाय-बछड़ेकी नॉई भीति रखनेवाले हैं। वहॉ भंग (टेढ़ापन) केवल वालोंमें है, नर-नारियोंमे नहीं है। चंचलता उत्तम स्त्रियोंमें ही है और किसीमें नहीं है । नेत्र ही नवीन वधूके मुख देखनेको याचना करते है और कोई मॅगता-भिखारी नहीं है। केवल मृदंग ही वहाँ ताड़े जाते हैं, परन्तु अपराध करके कोई ताड़ना नहीं पाता । वहॉ मदन जातिके वृक्ष तो है, पर मदन-कामदेवका बोलवाला नहीं है । केवल वृक्षोंसे पत्तोंका पतन होता है; परन्तु उत्तम अवस्थासे नीचे कोई नहीं गिरता । वहाँके सत्पुरुषोंमें दान देनेके लिए तो चढ़ा-ऊपरी देख पड़ती है, पर और और कामों में नहीं । कामी पुरुषोंके चित्तको तो स्त्रियाँ चुराती हैं। परन्तु इसके सिवा वहाँ और चोरी नहीं होती; वहाँ चोर-लवाड़ पुरुप ही नहीं है । एवं कामी पुरुष ही केवल स्त्रियोंसे डरते हैं और किसीको वहाँ-डर-भय नहीं है । पुष्प ही वृक्षों परसे हरे जाते है, इसके सिवा कोई किसीकी चीजको नहीं हरता । वहाँ यदि नीचता ( गहराई ) है तो नाभि• मंडल में है, पुरुष कोई भी नीच नहीं है। वहाँ केवल व्याकरण-शास्त्रमें तो किप प्रत्ययका लोप-विनाश-सुना जाता है, पर और कहीं भी विनाश शब्दका प्रयोग नहीं होता। वहॉके पत्थर तो अवश्य नीरस है, पर पुरुष कोई भी नीरस-रूखे स्वभावाले नहीं हैं । वहाँ सभी पुरुष ज्ञानी है, कोई मूर्ख नहीं है । वहॉकी सभी स्त्रियाँ शीलवती हैं, कोई दुःशीला नहीं है । वहाँके वृक्ष हमेशा फलोंसे लदे रहते है । तात्पर्य यह कि वह देश सव तरह शोभाका स्थान है । उसका कोट वहुत मनोहर
और सारे संसारको वशमें करनेवाला है। जान पड़ता है कि भयके मारे केकी रूप धर कर शेष नाग ही उसकी सेवा करता है । वहाँके सभी धनवाले धीर-वीर हैं। उन्हें पुण्यका पूर्ण फल प्राप्त है । वे हमेशा धर्म, अर्थ और कामका यथायोग्य सेवन करते हैं और उनके फलको भोगते हैं । वे दान, पूजा आदि सत्कर्मोंके द्वारा पापकर्मीका नाश किया करते है । अतः पाप-काँके उदयसे होनेवाले रोग-शोक उनके पास ही नहीं फटक पाते। उनके सभी काम शुभं होते हैं और वे हमेशा अमन-चैनसे रहा करते है । वहॉकी खाईमें नीले कमलोंकी बहुतसी कतारें है और वे कमल फूले हुए हैं । जान पड़ता है कि वह खाई एकदम , अपने वहुतसे नेत्रोंको खोल कर अपने मध्यभागकी शोभाको ही देख रही है । उसक
मध्यभागमें जो वहाँके महलोंकी परछाई आकर पड़ती है उससे उसकी अपूर्व । शोभा देखनेके ही योग्य है । उसको देखनेसे नेत्र खिल उठते है । वहॉके बाजार