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पाडण्व-पुराण । ता है और वे कमलोंवाले हैं। वहॉके बगीचे स्त्रियोंके तुल्य हैं । स्त्रियाँ मुन्दर, कामकी उद्दीपक और तिलक लगाए होती हैं वे भी सुन्दर, कामके उत्तेजक , मौर तिलकके वृक्षोंसे युक्त हैं । स्त्रियाँ सपुप्पा ( रजोधर्मवाली) और सफला
वाल-बच्चोंवाली) होती है वे भी फल और पुष्पोंवाले है । तात्पर्य यह कि वे बहुत ही मनोहर और सुखदाता हैं।
___ वहाँके खेतोंमें जो धान्य फलके भारसे नम गये है वह ऐसे जान पड़ते है मानों अपने पास बुलानेके लिए पथिक लोगोंको नमस्कार ही करते है। इससे अधिक उनकी और क्या तारीफ की जाय । वह देश अपनी विभूति और आतापको दूर करनेवाले महलोंकी कतारोसे ऐसा जान पड़ता है मानों सब देशोंका अधिपति ही है। उसकी भूमि देवचरु, उत्तरकुरु भोगभूमिके जैसी है
और इसी लिए उसे कुरुजांगल कहते है । इस देशको देखनेसे भारतके कला-कोविदोंकी चतुराईका चित्र हृदय पर खिंचे विना नहीं रहता । सारांश यह कि वह देश सब तरहसे सुन्दर और सम्पत्तिका खजाना है। न कुरुजांगल देशमें हाथियोंके समूहसे भरपूर एक हस्तिनागपुर नाम नगर है। वह दुष्ट, अभिमानी पुरुषोके घमंडको एक मिनटमें ही चकना-चूर कर देता है। वहॉके कोटके कॅगरों पर आकर तारा-गण ऐसे जान पड़ने लगते है मानों जड़े हुए क्ताफल ही हैं। और कोटके दरवाजों पर जो गुमटियाँ बनी हुई है उन पर आकर वॉद सोनेके कलशसा देख पड़ने लगता है । विप-जलसे भरी हुई और मणियोंसे जड़ी हुई वहॉकी खाई ऐसी जान पड़ती है मानों नगरकी सेवाको आये हुए रोषनागद्वारा छोड़ी हुई भयावती कॉचली ही है। कारण वह भी विषसे परिपूर्ण
और मणियोंके जैसी जड़ी हुई चित्र-विचित्र छोटे छोटे दानोवाली होती है । र वहॉ जो सत्पुरुषोंकी अटारियाँ बनी हुई हैं उनकी भूमि वहुत ही मनोहर है। और उनमें जो सत्पुरुष रहते हैं उनके चढ़ने और उतरनेसे वे ऐसी मालूम साड़ती है मानों नरक और स्वर्गको जानेका रास्ता ही बताती है । वहाँके जिनालय
बहुत ऊँचे है। उनके शिखरोंमें ध्वजाएँ लगी हुई हैं और उनमें हमेशा ही बाजे वजा र करते हैं, जिससे ऐसा जान पड़ता है कि वे ध्वजारूप हाथों और वाजोंके शब्दों के यारा भव्य जीवोंको ही बुलाते हैं, और शिखरोंके ऊपरी भागमें लगे हुए दंडों की लंटियोंके झुन झुन शब्दोंके द्वारा उनसे यही कहते हैं कि हे भव्यजनो ! पुण्यका चय करो, उसके प्रभावसे तुम लोग हमारे बराबर ऊँचे-उन्नत हो जाओगे।