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________________ •rn ummmmmmmmmmmm दूसरा अध्याय । २७ है । अतएव कहा जाता है कि वह उत्तम गुणों का खजाना है । वहॉके खेतोंमें तीनों ऋतुओंके उत्पन्न हुए अन्नके ढेरके ढेर लगे रहते हैं, जिनसे वे खेत ऐसे देख पड़ते हैं मानों अन्नसे भरपूर राजाके कोठे ही हैं। वहाँके वनकी श्री (शोभा) एक महारानीके साथ तुलना करती है। महारानी कुलीन और सुन्दरी होती है वह भी कुलीन (पृथ्वीमें मिली हुई) और सुन्दरी है। महारानी सफला (बालबच्चोंवाली) और शुभ होती हैं वह भी सफला (फलोवाली ) और शुभ-अच्छे फल देनेवाली है। महारानी राजाके भोगोंको साधती है वह सभी लोगोंके भोगोंको साधती है, उन्हें फल देती है। वहाँके गाँव बिल्कुल पास पास है । वे इतने कि एक गॉवसे दूसरे गॉवमें मुर्गा उड़ कर जा सकता है । उनमें बड़े बड़े सत्पुरुषोंका निवास है और बड़ी उँची तथा मनको मोहनेवाली महलोकी लाखों कतारें बनी हुई हैं। वहाँके तालाब अपने अमृत जैसे मीठे और स्वच्छ जलसे लोगोंके संतापको दूर,करते हैं। वे ऐसे जान पड़ते हैं मानो मुनिजनोंके ध्यान ही हैं। कारण, ध्यान भी तो संसार-तापको हरता है और निर्मल होता है । वहाँके धान्य कर्मों के दयकी नॉई नियत समय पर अपना फल देते हैं । वहाँ कभी अकाल नहीं पड़ने पाता । पुण्यके उदयसे वहाँ रवर्गके देव आकर जन्म लेते है और वे भव्य दुष्टता, मात्सर्य, क्रोध आदि भावोंसे रहित त्यागी सरीखे होते हैं। एवं वहॉके वनमें फले हुए वृक्ष, पक्षियोंके द्वारा कल-कल शब्द करके पथिक लोगोंको बुलाते हैं और जो जैसे फलोंको चाहते है उन्हें वैसे फल देते है। अतः उन वृक्षोंको कल्पवृक्ष भी कह सकते है । वहाँके सभी मनुष्य सुन्दर है तथा सभी वृक्ष फलोंसे लदे हुए है, जिससे वे कल्पटक्षोकी समता करते है । वहाँके जिनालय भारी भारी ऊँचे हैं, मनोहर और धर्मके दाता हैं। वहॉकी स्त्रियाँ अपने रूप-लावण्य, कला और सुरसे देवांगनाओंको भी जीतती है, उन्हें नीचा दिखाती हैं, लना देती हैं। वहाँके नगरोंके पासमें अन्नकी बड़ी बड़ी देरियाँ लगी रहती हैं । वे ऐसे जान पड़ती हैं मानों सूरजको विश्राम देनेके लिए पहाड़ ही खड़े किये गये है। वहॉके बगीचों, द्रोणों, पत्तनों, वाहनों और नगरोंमें महलोंकी मनोहर कतारें वने हुई है । वहाँके तालाव चित्तके साथ तुलना करते है । क्योंकि चित्त गंभीर और . मनोज्ञ (मनसे जाननेवाला) होता है वे भी गहरे और मनोज्ञ-सुन्दर है । चिर . सरस (रसोंको जाननेवाला) और तृष्णाको घातनेवाला होता है वे भी सरसमीठे जलवाले और प्यासको बुझानेवाले हैं। एवं चित्त सपद्म (कमलाकार
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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