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________________ पाण्डव-पुराण । आय, नालिकेर, नीबू, जॉबू, केला, विजौरा, मधुपुष्प, नारंगी, कमरख, तेंदू, कैथ, वेर, ऑवला, चारोली, श्रीफल इत्यादि वृक्ष; दाख, कुप्मांडी और चिर्भटा इत्यादि लताएँ; ब्रीहि, शालि, मूंग, राजमाप, उड़द, गेहूं, सरसों, कोदों, मसूर, चना, जौ, धान, तुअर इत्यादि अन्न-भूखको दूर करनेके 'लिए इन चीजोकों काममें लाना चाहिए । अन्नके भेदोंको समझा कर प्रभुने उनके पिकालेकी विधि वताई; और मिट्टी आदिके वर्तनोंसे काम लेना बना कर उनके । भेद बताये । तथा असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और पशुपालन इन छ: उकयों का भी भगवानने उपदेश किया । इसके बाद प्रभुने भरत आदि अपने एक ३ सौ एक पुत्रोंको शिक्षा दी और ब्राह्मी, सुन्दरी इन दोनों पुत्रियोंको भॉति भॉतिकी पकलाएँ सिखाई । इसके बाद शुभ मुहूर्तमें इन्द्रके साथ-साथ नाभिराजाने प्रभुको इप्रजाके हितके लिए उत्तम राज-सिंहासन पर बैठा कर उनका राज्याभिषेक किया। ए राज-पाटको सँभालते ही विद्वानों द्वारा पूजे जानेवाले भभुने इन्द्रको आज्ञा दी कि तुम विदेहकी भॉति यहाँ भी देशोंकी रचना करो । प्रभुकी आज्ञा पाते ही इन्द्रने कोशल आदि देशोंकी रचना की और उनकी नीचे लिखे माफिक व्यवस्था साकी । उसका वर्णन सुनिए। । जिसके चारों ओर वाड़ हो वह गॉव और जिसके सब ओर कोट फिरा हो जह' पुर है । नदी और पहाड़के वीचमें जो हो उसे खेट तथा चारों ओरसे पर्वतोंके द्वारा घिरे हुएको कर्वट कहते हैं । जिससे पाँचसौ गॉव लगते है उसे मटंव और "जिसमें रत्नोंकी खाने हो उसे पत्तन कहते हैं । जो समुद्रके किनारेसे भिज्ञ हो वह द्रोण और जो पर्वतके ऊपर हो वह वाहन है। इसके सिवा प्रभुने तीन वणोंकी व्यवस्था की। वे वर्ण हैं-क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । जिनका आचरण गिरा हुआ था उन्हें भगवानने शूद्र कहा तथा उत्तम आचरणवालोंको उनके कम-बढ़ आचरणको "लेकर वैश्य और क्षत्रिय कहा । इस प्रकारकी वर्ण-व्यवस्था करके प्रभुने जो क्षत्रि योंके भेद किये थे उन्हें सुनिए । वे चार हैं । मिष्टभाषी इक्ष्वाकु, कौरव, हरिवंश सऔर नाथवंश । इसके सिवा प्रभुने संसार-मसिद्ध कौरववंशमें उत्तम लक्षणोंके धाधारक दो श्रेष्ठ राजोंकी स्थापना की। उनके नाम थे सोम और श्रेयान्स । पुरुजांगल नाम एक प्रसिद्ध देश है । वह भूमंडलका भूषण और उत्तम गुणोंको भंडार है। वहाँकी जमीनमें एक अपूर्व गुण है। वह यह कि उसमें बिना बोये जोते ही धान्य पैदा होता है। उस धान्य द्वारा लोगोंको भारी सुख होता M
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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