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दूसरा अध्याय।
राजन् ! हम लोग खाने पीनके विना बहुत दुखी हो रहे हैं। देखिए, हमारे शरीर कितने कृश हो गये हैं और हमारे हृदयमें एक भारी हलचलसी मच रही है । इस लिए हम सब आपसे बिन्ती करते हैं कि आप हमारे दुःखोंको दूर कर हमें सुखी बनाइए । हे नाथ ! जो कल्पवृक्ष हमें पिताकी भॉति पालते पोसते थे वे न जाने क्यों हमारे देखते देखते ही बिला गये। उनके विना अब हम लोग बहुत ही दुखी हो रहे हैं. हमें जीविकाका कुछ भी उपाय नहीं सूझता । उन दीन-दुखी जीवोंकी पुकारको सुन कर वुद्धिशाली नाभिराजाने उन्हें बहुत कुछ समझाया-बुझाया और बाद आदिनाथ भगवान के पास भेज दिया । भूखके मारे वे मुरझा रहे थे; शर्मके मारसे उनके मस्तक नीचेको झुक गये थे । वहाँसे चल कर वे भगवानके पास आये और भगवानको उन्होंने अपनी सारी कहानी कह सुनाई । उन्होंने कहा कि हे देव ! हे देवेश और संस्तुत्य ! आपके गर्भोत्सवके समय देवतोंने मूसलधार जलकी वरसाकी भॉति रत्नोंकी बरसा की थी, जिससे उस वक्त हम लोगोंको अपनी दरिद्रताका कुछ भान न हुआ था । वह अव न जाने कहाँ चली गई । हे नाथ ! इस समय आप कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे हमारी भूख भाग जाय और हम सब सुखी हो। जायँ । प्रभो ! पुण्यात्मा और पवित्र देवता-गण भी जब आपकी आज्ञाको मानते है--शिरोधार्य करते हैं तव फिर इस वक्त आपको दुर्लभ ही क्या है । यदि आप चाहें तो एक क्षणमें ही हमें धन-दौलतसे सुखी बना सकते हैं । देव ! यदि आपके होते हुए भी हम लोग मर गये तो आपकी दयालुता कहाँ रहेगी ! इस लिए हे पवित्र ! आप हमारी रक्षा करो, हमें बचाओ । भूखके मारे हम लोगोंके शरीर बहुत कृश हो गये हैं-प्राण निकलते हैं। उनके दीन वचनोंको सुन कर प्रभुका हृदय दयासे भर आया । सच है गरीबोंको देख कर सभीको दया आ जाती है। इसके उत्तरमें तीन ज्ञानके धारक प्रभुने कहा कि पृथ्वी पर अनेक जातिके वृक्ष है और उनमें अनेक प्रकारके गुण है । तुम लोग उनको उपयोगमें लाओ। वृक्षोंमें कुछ तो खानेके कामके है और कुछ नहीं भी है। इस लिए तुम लोग पहले उन वृक्षोंका आदर करो जो तुम्हारे खानेके कामके हैं । और ऐसा ही। उत्तम पुरुष करते है । देखो, वृक्ष, बेल और तृण ये तीन वनस्पतियाँ है और इन्हींके खाने योग्य और न खाने योग्य ऐसे दो भेद हैं । वृक्षोंमें नीचे लिखे वृक्ष आदि खानेके योग्य हैं । उनकै नाम सुनो
पाण्डव-पुराण ४