SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . warmirmwwwnwww.neuwww. xxx. wwwwwwwe ३८८ पाण्डव-पुराण। vwomewww wwer . इस प्रकार अनुपेक्षाओंका चिंतन करनेसे उनकी विरक्तता बिल्कुल ही अचल हो गई। सच है कि समर्थ कारण मिलने पर सत्पुरुषोंका शील-स्वभावस्थिर हो जाता है । उन्होंने शरीर आदि परिग्रहको तृणकी बराबर भी न समझा । बुद्धिमान् जन अमृत हाथ लग जाने पर विषको कभी पसंद नहीं करते । इस तरह मनोयोगको रोक कर, शुद्ध योगका आश्रय ले तीन पाण्डवोंने तो बहुत जल्दी क्षपश्रेणी पर आरोहण किया; और प्रबुद्ध होकर शुद्ध ध्यानके वल निर्विकल्प चित्तसे आत्माका ध्यान किया। वे अधःकरणका आराधन कर अपूर्व करण पर चढ़े और बाद अनिवृत्तिकरण पर पहुँचे । एवं परिणामोंको शुद्ध करते हुए उन्होंने अप्रमतगुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय तक तिरेसठ कर्मप्रकृतियोंका नाश किया और केवलज्ञान उपार्जन कर तथा वाद अघातिकर्मोको भी नाश कर तीन पांडव अन्तकृत् केवली होकर मोक्ष गये युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन शिवधाम पहुँचे । वे सिद्धगति लाभ कर सम्यक्त्व आदि आठ गुण तथा अनंत सुखके भोक्ता हुए । अब उन्हें न तो पाँच प्रकारके संसारकी बाधा रही और न क्षुधा आदि अठारह दोषोंका कोई जंजाल रहा-वे निर्दोष और अनंत सुखके भोक्ता हुएं । जिनके सव मनोरथ पूर्ण हो गये हैं और जो अनंतानंतकाल अभय-मोक्ष-के सुखको भोगेंगे वे सिद्ध पाण्डव हमें भी सिद्ध-पद दें। इस प्रकार उन तीनों पांडवोंको केवलज्ञान और निर्वाणकल्याण दोनों एक साथ हुए जान कर तत्क्षण देवगण आये और उन्होंने उनके ज्ञान और निर्वाण कल्याणका महोत्सव मनाया। - उधर पाप-रहित नकुल और सहदेव चित्तमें कुछ अस्थिरता हो जानेके कारण स्वर्गके सन्मुख हुए । उपसर्ग सहते हुए मरे और जाकर सर्वार्थसिद्धिमें अहमिन्द्र हुए । वहाँ वे तैतीस सागर तक सुख-भोग भोगेंगे । बाद वहाँसे चय कर मनुष्य-लोकमें मनुष्य होंगे और फिर आत्म-साधन कर तप द्वारा सिद्ध होंगे-शिवधाम जावेंगे । इसी प्रकार राजीमती; कुन्ती, सुभद्रा और द्रोपदीने भी धर्म-साधनके लिए तत्पर होकर सम्यक्त्वके साथ-साथ व्रत धारण किये और चिरकाल तक शुद्ध भावोंके साथ उनका पालन किया । वे अ'युके अन्त चार आराधनाओंको आराधते हुए संन्यास धारण कर सोलहों स्वर्ग गई और स्त्री-लिग छेद कर वहाँ उन्होंने देव-पद पाया-वे सब सामानिक देव हुई । इसके बाद बाईस सागर तक वहाँके सुख भोग कर जब वे वहाँसे
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy