SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छब्बीसवाँ अध्याय | ૧ च्युत होंगी तत्र मनुष्य-लोकमें आ, नर-जन्म धारण कर तप करेंगी और ध्यानके योग से कर्म-क्षय कर शिवधाम जायेंगी । wwwwwwwwwwwwwww इसके बाद ज्ञानी नेमिप भी विविध देशोंमें विहार करते रैवतक पहाड़ पर आये । अब उनकी आयु सिर्फ एक महीने की रह गई थी । वहाँ उन्होंने वचनयोग रोक कर योगनिरोध किया और पर्यकासन लगा निष्क्रिय स्थित हुए । इसके बाद वे अन्तके गुणस्थानमें शेष रहीं पचासी प्रकृतियोंका नाश कर शुक्लपक्षकी सप्तमीके दिन पाँच सौ छत्तीस योगियोंके साथ मुक्तिधाम पधारे । उनके निर्वाण महोत्सव के लिए सब सुर-असुर आये और प्रशुके गुणोंको चाहते हुए निर्वाण -कल्याण कर अपने अपने स्थान चले गये । ! जो क्रमसे विंध्याचल पर भील हुए, उत्तम गुणोंके धारक वणिक हुए, इमकेतु देव हुए, चिंतागति विद्याधर राजा हुए, सुमना महेन्द्र हुए, पराजित राजा हुए, अच्युतेन्द्र हुए, सुमतिष्ठ राजा हुए और अन्तमें जयंत विमानमें अहमिन्द्र होकर यहाँ नेमिप्रभु हुए -- वे नेमिप्रभु हम सबकी रक्षा करें। वे पांडव लक्ष्मीदें जो पहले परमोदयशाली ब्राह्मण हो, तीव्र तप कर अच्युत स्वर्ग में देव हुए और वहाँ से चय कर यहाँ युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव हुए तथा पीछे तप कर तीन मोक्ष गये और अन्नके दो मद्री सुत स्वर्गधाम गये । जो दीप्तिशाली देव हैं, पाप-दर्प-रूपी दाबके लिए अनिके कंद हैं, भयको दूर करनेवाले हैं, दिव्य चक्षु और दिव्य वीर्यशाली हैं, कीर्तिके दाता हैं, शम-दमसे युक्त है, महान् दीप्तिशाली देहके धारक है और सर्वदर्शी हैं वे दुरितको दारण करनेवाले प्रभु हमें शिव दें । 1 कहाँ तो श्री गौतम आदि द्वारा कहा गया पांडवोंका विशाल चरित और कहाँ मेरा अल्प ज्ञान जो पूर्णपने कर्मरूपी आवरण से ढँका हुआ है । यद्यपि मेरे ज्ञानकी इस विशाल चरित के साथ कुछ भी तुलना नहीं हो सकती तो भी मैंने इसके रचनेका जो प्रयत्न किया है यह मेरी धृष्टता ही है । मैंने जो इस उत्तम कथाके कहनेका साहस किया है वह वैसा ही है जैमा बालक तारागणके गिनने की कोशिश करते हैं, मेंदक समुद्र के जलकी थाह लेनेका यत्न करता है और भीरु पुरुष अपने पराक्रमको दिखानेका साहस करता है ।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy