________________
-
. wanne
३५८
पाण्डव-पुराण। www.wwwwwwwwwwwwww ws ano man www ww . - मिल रहा है । मेरी तुम रक्षा करो । द्रोपदी बोली कि मूह, मैंने तो तुझसे पहले ही कहा था कि पाण्डव बहुत जल्दी आवेंगे और तुझे नष्ट कर देंगे । भला, जिन्होंने युर्योधन आदिको क्षणभरमें जीत लिया उनके आगे तेरी तो बात ही क्या है । राजा द्रोपदीकी खुशामद कर ही रहा था कि उसी समय वहाँ हाथी जैसे निरंकुश पांडव पहुँच गये । उन्हें देखते ही रक्ष-रक्ष कहता हुआ पद्मनाभ एकदम नम्र हो गया। वह द्रोपदीकी ओर देखता हुआ भयसै आतुर हो बोला कि देवी, तुम अखंड शील पालनेवाली सच्ची सुशीला हो । तुम मुझे अभयदान दो, जिसके द्वारा कि इनसे मेरे प्राण बचें। यह सुन द्रोपदीने उसे अभयदान दियाउसके हृदयसे पांडवोंकी तरफका भय निकाल दिया । इसके बाद विनयके साथ कृष्ण और पांडवोंको नमस्कार कर उसने उनका भोजन आदिसे बड़ा सत्कार किया। इस समय पांडवोंने द्रोपदीके साथ स्नान कर और अर्हन्त देवके चरणकमलोंकी पूजा कर उसको पारणा कराया । .
शुभचन्द्र जिनेन्द्रको उत्तम भक्तिसे नमस्कार कर भव्य-भावको प्राप्त हुए सुभव्य पांडवोंने द्रोपदीको प्राप्त कर जो सर्वोत्तम लोक-व्यापी उज्ज्वल यश प्राप्त किया वह सब पुण्यका ही प्रभाव है।
देखो, वह सब जिनदेवके बताये धर्मका ही प्रभाव है जो कि राजों द्वारा पूजित पद्मनाभ राजाको जीत कर पांडवोंने दूर देश घातकीखंड दीपमें प्रतिष्ठा पाई
और पार्थ-पत्नी द्रोपदीको प्राप्त किया । यह जान कर हे भन्य-गण, सदा धर्मका सेवन करो।