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पाण्डव-पुराणं ।
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वधका हाल सुना त्यों ही वह क्रुद्ध होकर जरासंघके पास गया और बोला कि प्रभो, दस हजार राजों के साथ ही आज दुर्योधन भी धराशायी हो गया है । यह सुन जरासंधको बड़ा शोक हुआ । वह व्याकुल हो उठा । इसके बाद ही उसने अपने सेनापति आदिके साथ ही प्रचंड अश्वत्थामाको पांडवोंके साथ युद्ध करनेके लिये आदेश किया । अश्वत्थामा वहाँसे दुर्योधनके पास आया और उसकी यह दशा देख शोक से बोला कि हे वीरवर, आपके बिना आज यहाँ सब शून्य देख पड़ता है; कुछ भी अच्छा नहीं लगता । राजन्, अब तक तुम्हारे ही प्रसादसे हम ब्राह्मण लोग इस उज्ज्वल राज्यको भोगते थे । परन्तु अब तुम्हारे बिना, हम क्या करेंगे | इतनेही में जरासंधने मधु राजाके सिर पर भी वीरपट्टक चाँध कर उसे बहुत सेना देकर पांडवोंसे युद्ध करनेके लिये भेज दिया । वह अपने दिलमें यह ठान कर चला कि मैं अभी जाकर पांडवोंका विनाश किये डालता हूँ और साथ ही कृष्णका मस्तक भी घड़से जुदा किये देता हूँ । इस बातको क्रोध में आकर उसने बड़-बड़ाते हुए कह भी डाला ।
अश्वत्थामाको देख कर मृत्यु- मुखगत दुर्योधन ने उससे कहा कि वीर अश्वत्थामा, लो मैं तुम्हारे मस्तक पर वीरपदक बाँधता हूँ। तुम अभी जाओ और शत्रुके साथ युद्ध कर उसे यमालयको भेजो। इसके बाद अश्वत्थामा अपनी सेनाको साथ लेकर चला और जाकर हो उसने सब ओरसे पांडवोंकी भयंकर सेनाको घेर लिया । उसने इस समय माहेश्वरी विद्याको याद किया । वह त्रिशूलको हाथमें लिये उसी वक्त दौड़ी आई | उसके मस्तक चंद्रका चिन्ह था । वह उससे बड़ी सुशोभित हो रही थी। उसके प्रभावको विष्णु और पांडवोंकी सेना न सह सकी और वह भाग छूटी । और जो कुछ थोड़ी बहुत रही थी उसे अश्वत्थामाने चूर डाला । उसने हाथी, घोड़े, रथ और राजा वगैरह सबको पद-दलित कर पांचालके राजाका मस्तक छेद दिया । इस प्रकार वह जय लक्ष्मी से भूषित हो पांचालके राजाका सिर लेकर दुर्योधनके पास गया और उसे उसने उसके आगे रख दिया । दुर्योधनको वह मस्तक देख कर कुछ संतोष हुआ । वह बोला कि संसारमें क्या कोई ऐसा शक्ति - शाली भी हैं जो पांडवोंको विध्वंस करे, जिन्होंने कि सुर-असुर और नर सबको ही परास्त कर द्रोण और कर्णको कालके घर पहुँचा दिया है । और जिनमें से अकेले भीमने ही हजारों राजों महाराजोंको यमलोकको पहुँचा कर मुझे भी इस इनमें का दिया है। सच तो यह है कि जब पाँचों ही पांडव जीते हैं तब इन
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