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इकबीसवाँ अध्याय ।
ફક तुच्छ पांवाल आदि राजोंको मारना तो किसी भी कामका नहीं; व्यर्थ ही है। इन निरीह राजोंके मारनेसे क्या लाभ होगा। मारना तो चाहिए उन पांडवोंको जिन्होंने कि जगत् भरको ही जेर कर रक्खा है।
उधर हरि, पांडव और वलभद्र आदिके कानोंमें जब यह बात पहुँची कि अश्वत्थामाने सेनानी सहित पांचालके राजाका मस्तक छेद डाला तव उन्हें बड़ा दुःख हुआ । यह देख कृष्णने कहा कि इस वक्त शोक न कीजिए, यह शोकका मौका नहीं है । एक पांचालपति मारा गया तो क्या हुआ, हम सब तो अभी जीते हैं। उधर कौरवोंकी दुर्दशा सुन कर जरासंघ क्रोधसे प्रलय-कालके समुद्रकी भाँति उमडा हुआ वहाँ आया । यह देख देवतोंने कृष्णसे कहा कि केशव, समय आ गया है, अब आप विलम्ब न कर मगधाधिपति जरासंघका शीघ्र काम तमाम कीजिए । यही आपके महोदयका समय है । सुन कर भविष्य चक्रवर्ती कृष्णने उसी समय जरासंधको ललकारा | फिर क्या था, यादवोंकी सेना तैयार होकर चली, जिसे देख कर जरासंधने सोमक नाम दूतसे कहा कि तुम मुझे इन सव राजोंका परिचय दो । दूत भिन्न भिन्न सव राजोंके चिन्द बताता हुआ उसे उनका परिचय देने लगा | वह बोला कि देखिए, महाराज, वह समुद्रविजयका रथ है, जिसमें सोने जैसे वर्णवाले घोड़े जुते हुए हैं और सिंहकी धुना है । वह रथनेमिका रथ है, जिसमें हरे रंगके घोड़े जुते हैं और वैलकी धुजा है । सेनाके आगे वह कृष्णका रथ है, जिसमें सफेद घोड़े जुते हैं और गरुड़की धुना है। यह दाहिनी ओर रामका रथ है, जिसमें नीले वर्णके घोड़े हैं और तालकी धुजा है। यह नीले घोड़ोंवाला युधिष्ठिरका रय है और वह विचित्र रथ भीमका है । महाराज, भीम भीतिको दूर करनेवाला अद्भुत वीर योद्धा है । वह सफेद घोड़ों और वानरकी धुनावाला अर्जुन है । वह उग्रसेन है, जिसके रयको लाल वर्णके घोड़े खींच रहे हैं । वह पीले घोड़ोंवाला और हिरणकी धुजावाला जरतकुमार है । शिशुभारकी धुजावाला और लाल-पीले घोड़ोंवाला वह मेरुका रथ है । वह सूक्ष्मरामका रथ है, जिसमें कि कांबोजके घोड़े - जुते हैं और सिंहकी धुना है । कमल जैसे लाल रंगके घोड़ोंवाला यह रथ पद्मरथका है । यह पंचपुड़ देशके घोड़ोंवाला और कुंभकी धुजावाला रथ विदूरथका है । कपोत जैसे रगके जिसमें घोड़े जुते है तथा पद्मकी जिसकी धुना है वह रथ शारणका है। और यह अनावृष्टि नाम सेनापतिका रथ है जिसमें कि। हाथीकी धुजा है और काले घोड़े जुते हुए हैं ।
पाण्डव-पुराण ४४