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कबीसवाँ अध्याय ।
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इसी समय रणोद्धतदुर्योधनसे युधिष्ठिरने कहा कि तुम मेरी अधीनता स्वीकार कर जी चाहे वहीं सुखसे रहो और रथ, हाथी, घोड़े आदि जो कुछ सम्पत्ति चाहिए वह मुझसे लो । तात्पर्य यह कि मेरी भृत्यता मान लेने पर तुम्हें किसी भी तरह की तकलीफ न होगी। तुम जो चाहोगे वही तुम्हारी चाह पूरी होगी । देखो, आज सारे दिन इस बातकी मैं प्रतिक्षा करूँगा कि तुम मेरी आज्ञा स्वीकार कर दयालु होओ, जिससे व्यर्थ ही इन हजारों योद्धाओंकी वाले न चढ़े । तुम सच्चे क्षत्रिय बन कर आज भी सिंहासन पर आरूढ़ हो उन्नत राजा वन सकते हो। ऐसा करनेसे तुम अपने कर्तव्यका पालन कर सकोगे । संसारमें तुम्हारी कीर्ति होगी । मेरा यही कहना है कि अब भी तुम अपनी दुष्टतां छोड़ कर मेरे साथ मैत्रीभाव स्वीकार करो । सुन कर दुर्योधन अभिमानके साथ बोला कि तुम्हारे साथ मेरा तो जन्म से ही वैर है, वह आज कैसे मिट सकता है। मैं तुम्हारी अधीनता स्वीकार करूँ, यह असंभव है; किन्तु याद रखिए मैं अकेला ही सारे संसारसे तुम लोगोंकी सत्ता उठा दूँगा तुमसे एकको भी मैं जीता न छोडूंगा । और एक बात है कि मैं यदि पृथ्वीको नहीं भोग सकूँगा तो तुम्हें भी नहीं भोगने दूँगा । सच तो यह है कि तुम सज कर रण-स्थलमें उतरो और मेरे साथ युद्ध करो। तुम्हारा मेरा फैसला युद्धमें ही होगा । यह कह कर क्रोधके मारे कॉपते हुए दुर्योधनने युधिष्ठिर के ऊपर तलवारका एक वार किया । युधिष्ठिरने उसे अपनी तलवार पर रोक लिया । इसी बीचमें वहाँ, अपनी भृकुटी मात्रसे बैरीके सेनाको कंपित कर देनेवाला भीम आ गया और कौरवोंकी प्रवल सेनाको ललकारता हुआ कि ठहरो ठहरो भागो मत, रण-स्थलमें डट गया ।
वह गदा हाथमें लेकर युद्ध करने लगा । उस समय वह गदा उसके हाथों में ऐसी जान पड़ी मानों बिजली ही है या यमकी जीभ है; अथवा नागकन्या ही है । इसके बाद भीमने क्रोधित हो जो गदा प्रहार किया वह जाकर दुर्योधनके मस्तक पर गिरा । उसने दुर्योधनको कंठ-गत प्राण कर दिया । वह जमीन पर धड़ाम से गिरा । अपने जीवनका कोई उपाय न देख उसने घीमेसे कहा कि क्या अब भी कौरवोंकी सेनामें कोई ऐसा वीर जीता बचा है जो पांडवका सर्वनाश कर सके । यह सुन किसी पास खड़े हुए भ्रत्यने कहा कि हॉ, है, और वह पवित्र गुरु-पुत्र अश्वत्थामा है । वह पांडवोंका विध्वंस कर सकता है । उसे वैरी दबा नहीं सकते | वह उनके लिए दुर्जय है । उधर ज्यों ही अश्वत्थामाने दुर्योधनके