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पाण्डव-पुराण |
सकता । में कौरवोंका राज्य कौरवोंको ही दूँगा । मैने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपना जीवन कौरवोंको देकर ही सुखी होऊँगा । इसके बाद द्रोण और धृष्टार्जुन फिर युद्धके लिए उद्यत हुए ।
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उधर अश्वत्थामाने भीमके पुत्र घटुकको ललकारा । घटुकके सामने आते ही क्षणभर में अश्वत्थामाने उसे धराशायी कर दिया । उसकी मृत्युसे पांडवों को बड़ा दुःख हुआ । वे विलाप करने लगे । यह देख कृष्णने उनसे कहा कि क्षत्रिय वीर रण-स्थलमें शोक नहीं करते | यह शोकका अवसर नहीं है । उधर पांडवों को शोक संतप्त देख कर कौरवोंकी सेना युद्धके लिए फिर उठ खड़ी हुई । यह देख भयंकर भीमने अश्वत्थामाको ललकारा और कहा कि गुरु-पुत्र होनेसे पहले मैंने तुझे जीता छोड़ दिया था, परन्तु अब मैं तुझे जीता कभी छोड़नेका नहीं । यह कह कर भीमने उस पर गदाका एक ऐसा प्रहार किया कि जिससे वह मूच्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। इसके बाद भीमने उसके हाथीको भी धराशायी कर दिया । इसी समय पांडवोंकी सेनाने जाकर युधिष्ठिरको नमस्कार किया और उनसे कहा कि देवोंके देव, पूर्ण विचार कर अपने कर्तव्यका शीघ्र निश्चय कजिए। क्योंकि द्रोणने घोर युद्ध करके आपकी सेनाको बिल्कुल ही जर्जरित कर डाला है; जैसे कि वज्र पहाड़को और वायु मेघोंको जर्जरित कर देता है । महाराज, हमारी सेनामें ऐसा कोई भी समर्थ वीर नहीं जो उन्हें रोक सके | इसके लिए एक उपाय है । वह यह कि द्रोणको पुत्र पर बड़ा प्रेम है | अतः आप यह कह दें कि अश्वत्थामा मारा गया है, तो काम बन जाय । पुत्र-वध सुन कर द्रोण अवश्य ही युद्धसे विमुख हो जायगा । सुन कर युधिष्ठिरने कहा कि तुम लोग झूठ क्यों बोलते हो, तुम नहीं जानते कि झूठ बोलने में बढ़ा दोष है, जिससे कि अशुभ कर्मोंका बंध होता है और उससे दुःख माप्त होता है। परंतु अन्तमें उनके आग्रहसे लाचार हो युधिष्ठिरने उक्त बातको स्वीकार किया और जाकर कहा कि युद्ध में अश्वत्थामा मारा गया है । पुत्र वध सुन कर द्रोणको इतना भारी शोक हुआ कि उनके हाथसे धनुष छूट पड़ा और वह आँसुओंकी धारासे पृथ्वीको सींचते हुए रो उठे । उनका धैर्य छूट गया ।
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यह देख युधिष्ठिरने थोड़ी देर बाद कहा कि मनुष्य नहीं, किन्तु हाथी मारा गया है । यह सुन कर द्रोणका शोक कुछ शान्त हुआ । उन्हें कुछ धीरज बँधा। वे चेत हुए कि उधरसे वार्जुनने तलवारसे उनका मस्तक घड़से जुदा करें