SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाण्डव-पुराण rawn .mmmmmmmmmmmwarrammmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. और वीर योद्धाओंको कभी नहीं मार सकता था। दुर्योधनके इन मर्मभेदी वचनोंको सुन कर क्रुद्ध हुए द्रोणने कहा कि राजन, आपका यह ख्याल ठीक नहीं, किन्तु उसने मुझे ब्राह्मण और गुरु समझके ही छोड़ा है । हाँ, तुम क्षत्रिय-पुंगव हो, अतः उसके साथ युद्ध करो । अच्छा मैं तुमसे ही पूछता हूँ कि तुमने युद्ध करते हुए पार्थको क्यों छोड़ दिया । वात यह है दुराग्रहके कारण तुम अपने दोषको नहीं देखते और व्यर्थ ही दूसरेको दोष देते हो । मैंने पार्थके वलको कई बार देख निर्णय किया है कि मैं उसकी बरावरी नहीं कर सकता । अव तुम्हें जो रुचे वह करके तुम अपने दिलका भाव पूरा कर लो। यह सुन दुर्योधन बड़ा घवराया। वह तब बहुत नम्र होकर बोला--प्रभो, आप महान हैं, महापुरुषोंके भी गुरु हैं, अतः मेरे अपराधों पर आप ध्यान न देकर ऐसा उपाय कीजिए जिससे आज रातमें, ही शत्रु नष्ट हो जायें । उन्मत्त दुर्योधनने यह मंत्र कर्णके कानों तक भी पहुँचा दिया । इस निश्चयके बाद कौरवोंकी निर्दय सेना रातों रात ही रण-स्थलको चली । धीरे धीरे वह रण-स्थल के पास पहुंची और उसने पांडवोंकी सोती हुई सेनामें प्रवेश किया; जैसे अँधेरेमें कोकिलाएँ कौओंमें प्रवेश करती हैं। इसके बाद कौरवोंने एकदम बाणोंकी बरसा कर पांडवोंकी सेनाको छिन्नभिन्न कर दिया, जिससे पांडवोंकी पक्षके राजा, उनके सामने क्षणभर भी नहीं ठहर सके और इधर उधर भागने लगे । यह देख कौरवोंने एक साथ दस बाणों द्वारा भीमको और तीन बाणों द्वारा उद्धत हुए नकुल और, सहदेवको वेध दिया। साथ ही उन्होंने दस बाणोंसे भीमके पुत्र घटुकको, पॉच बाणोंसे अर्जुनको और छह बाणोंके द्वारा शिखंडीको वेध दिया । एवं सात बाणोंसे धृष्टधुन्नको और पॉच बाणोंसे प्रसिद्ध शासक कृष्णको वेध दिया। इसी समय क्रुद्ध होकर युधिष्ठिर युद्धके लिए उठा और उसने अपने बाणोंकी प्रबल मारसे दुर्योधनको बड़ी बुरी तरह वेध डाला, जिससे वह बे-होश होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा और उसे प्राणोंके लाले पड़ गये। " यह देख द्रोण युद्धके लिए युधिष्ठिरके सामने आये और उन्होंने पांडवोंकी सेनामें प्रवेश किया। इस वक्त वह ऐसे जान पड़े मानों आकाशमें उन्नत सूरज ही उदित हुआ है । इसी समय सबेरा हो आया । पांडवोंकी सेनाको द्रोणने एक क्षणमें ही पीछे हटा दिया। यह देख वीर पार्थने अपने शस्त्र-कौशलसे ब्रह्मास्त्र
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy