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इकबीसवाँ अध्याये |
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सूरज अस्त होनेके पहले पहले ही तुम अपने तीव्र वार्णोंके द्वारा इसके मस्तकको घड़से जुदा कर दो तभी तुम्हारी वीरता है ।
Anon
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यह सुन पार्थने उस नागवाणको हाथमें लिया, जिसे कि शासनदेवताने सौपके रूपमें अर्जुनको दिया था । इसके वाद अर्जुनने देखते देखते ही उस वाणसे जयार्द्रका मस्तक धड़से जुदा कर दिया और उस मस्तकको लेकर वह आकाश मार्गसे वहाँ गया जहाँ उसका पिता तप कर रहा था । जाकर उसने सिरको उसके हाथोंमें रख दिया । इसके साथ ही जिस तरह तालावमें लगा हुआ कमल काट देने पर गिर जाता है उसी तरह उस मस्तकको देखते ही उसका पिता भी गत चैतन्य होकर पृथ्वी पर लौट गया ।
उधर जयाके मारे जाते ही पांडवोंकी सेनामें जय जयकार शब्द होने लगा | और जयसे प्राप्त हुई पार्थकी कीर्ति सारे भूतल पर विस्तृत हो गई । उधर कौरवोंकी सेनामें हाहाकार मच गया। जयार्द्रकी मृत्युसे दुर्योधनकी आँखोंसे आँसुओंकी धारा वह निकली । वह रो उठा और विलाप करने लगा कि जयार्द्र, तुम्हारे बिना आज मेरी सारी सेना शून्य हो गई ।
इसी समय दुर्योधनको धीरज बँधाते हुए अश्वत्थामाने कहा कि राजन, तुम दुःख क्यों करते हैं। मैं तुम्हारे दुःखके कारणको अभी दूर किये देता हूँ । यह कह कर हाथमें धनुप ले वह पार्थके ऊपर टूट पड़ा और क्रोधमें आ उसके साथ तीव्र वाणोंके महार द्वारा युद्ध करने लगा। थोड़े ही समयमें गुणी अश्वस्थामाने पार्थके धनुषकी डोरी छेद दी । यह देख पार्थका चेहरा प्रफुल्लित हो उठा । वह साथ ही धनुप लेकर अश्वत्थामाको दबाने लगा; जैसे सिंह मत्त गजेन्द्रोंको दवा देता है । एवं थोड़ी ही देर में पार्थने छह वाणोंके द्वारा उसके सारथीको पृथ्वी पर गिरा उसे भी धराशायी कर दिया, जिससे वह वे सुध हो गया; उसे कुछ चेतना न रह गई । पार्थने उसे गुरु-पुत्र समझ कर छोड़ दिया । उससे कुछ भी न कहा और न उसे कैद ही किया । इसी प्रकार अर्जुनने और भी वहुतसे राजों को पृथ्वी पर लिटा दिया; जैसे सिंह मतवाले हाथियोंको जमीन पर लिटा देता है । युद्ध करते करते रात हो गई । और सब सेनायें अपने अपने डेरों पर चली आई |
अपनी यह दुर्दशा देख क्रोध-वश हुए दुर्योधनने द्रोणसे कहा कि यह सब तुम्हारा ही किया हुआ है । यदि तुम पार्थको मार्ग न देते तो वह हाथी, घोड़े