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पाण्डव-पुराण।
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हो सकता हूँ । वात यह है कि इस वक्त तुम यौवन-श्री करके युक्त हो, अत एव तुम्हें ही इसके साथ युद्ध करना चाहिए । ___ यह सुन कर दुर्योधन वोला कि अच्छी वात है आप देखते रहिए कि मैं पार्थको क्षणभरमें यमपुरका पथिक बनाये देता हूँ। इसके साथ ही वह हायमें धनुष उठा पार्थके साथ युद्धके लिए उद्यत हुआ । उधरसे पार्थ भी उससे युद्धके लिए तैयार हो कर आया । उन दोनोंके साथ और भी बहुत वीर-गण थे। उन दोनोंका शरीर रणश्रीसे भूषित हो रहा था । युद्ध करते हुए दुर्योधनने पार्थके वाणोंको छेद दिया और अभिमानमें आकर वह पार्थकी यह कह कर हँसी उड़ाने लगा कि तुम्हारा गांडीव धनुष अब तक काम नहीं आया। यह देख नारायणने हँस कर अर्जुनसे कहा कि पार्थ, तुम थक तो नहीं गये हो ? पार्थने कहा कि नहीं, मैं तो सिर्फ वैरियोंको मार कर कुछ शान्तिके लिए बैठ गया हूँ । मैं अभी इन सव शत्रुओंको धराशायी किये देता हूँ। आप तो मेरे अपूर्व पराक्रमको देखते जाइए । विश्वास रखिए कि मैं कौरवोंको जीत कर चन्द्र जैसे स्वच्छ, उत्तम यशको संचित करूँगा । यह कह जोशमें आ पार्थने शरोंकी प्रवल मारसे दुर्योधनको वेध डाला । उसके द्वारा अपनी सेनाको छिन्न-भिन्न देख कौरव हाहाकार कर उठे । इसी समय कृष्णने अपने पाँचजन्य शंखको फूंका । उसके शब्दको सुन कर जयाको बड़ा कोष हो आया । वह भयभीत हो प्रभा-विहीन हो गया । उधर कौरवोंकी उद्धत हुई सेनाको अकेले पार्थने ही तितर-बितर कर भगा दिया । फिर वह कृष्णके आगे भी मस्तक न उठा सकी । इस समय इतना भयंकर युद्ध हुआ कि सारी पृथ्वी रुंड-मुंड-मय हो गई । सारी युद्धभूमिमें श्वास-उच्छास रहित मुर्दै-ही-मुर्दे देख पड़ने लगे।
इसके बाद पार्थने ज्यों ही जया को देखा त्यों ही उसे बड़ा भारी क्रोध आया और उसने मर्मभेदी वचनों द्वारा उसके हृदयको भेदते हुए कहा कि नीच, तूने ही न युद्धमें अभिमन्युका अन्यायसे वध किया है ! अब मेरे सामने आ
और मुझे अपना पराक्रम और अपनी वीरविद्या वता । नीच, मैंने तुझे वड़ी देरमें देख पाया । अव भी तुझमें शक्ति हो तो तैयार हो रणांगणमें आकर मेरे साथ युद्ध कर और इन कौरवोंको वचा । पार्थके , वचनोंको सुन कर देवतोंको वड़ा सन्तोष हुआ । वे उसकी भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे । इसी समय धनंजयने अपने बाणों द्वारा जयाके धनुष, घोड़े और धुजा वगैरहको छेद दिया। और उधरसे कृष्णने उसके कवचको भेद कर अर्जुनसे कहा कि पार्थ,