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, इकबीसवाँ अध्याय ।
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कारण लोग कहीं ठहर नहीं सकते । इसी समय अपनी सेनाको मारके मारे
भागती हुई देख कर द्रोणने उसे धीरज देते हुए कहा कि वीर भट-गण, आप लोग . न भागें, न भय करें। ऐसा करनेसे हम लोगोंको बड़ा लज्जित होना पड़ेगा।
और जहाँ मैं हूँ वहाँ आप लोगोंको भय ही क्या है । आप लोग स्थिर हो निर्भय होइए । द्रोणके वचनोंको सुन सब सुभटगण भागते हुए ठहर गये । इसी वीचमें अर्जुन और कृष्णने आकर द्रोणको प्रणाम कर कहा कि प्रभो, आपसे हमारी प्रार्थना है कि इस युद्धमें योग न देकर आप रण-स्थलसे वापिस चले जाइए । आपके होते हुए हम अपने पूज्य गुरुको लॉप कर शत्रु-सेनाका विध्वंस कैसे करें। ___ यह सुन उत्तरमें द्रोणने कहा मैं रण-स्थलसे वापिस कैसे जा सकता हूँ। मुझे तो तुम लोगोंके साथ युद्ध करना होगा। एक बात और है जो तुम्हारे ध्यान देने योग्य है । और वह यह है कि मैंने आज तक जिसकी भी रक्षा की है संसारमें वही पुरुष अमर हो गया है, और जिसे मारा है वह सदाके लिए सो गया है । अत एव इस पर विचार कर ही तुम्हें युद्धमें बढ़ना चाहिए । यह सुन कर पार्थका हृदय क्रोधसे भर आया। वह फिर उसी समय रथमें सवार हो, धनुष संधान कर युद्धके लिए चल पड़ा । उसी समय भटोंको भय देनेवाले भयंकर बाजे वजे । रण आरंभ हुआ। बलशाली पार्थने पहले ही द्रोणको नौ बाण मारे, जिनको कि द्रोणने उसी समय अपने वाणोंसे छेद दिया। इसके बाद पार्थने फिर दूने दूने बाण छोड़े, और जब तक वे पूरे एक लाखकी संख्या तक पहुँच न गये तब तक वह वराबर बाण छोड़ता ही चला गया । द्रोणने रणके सन्मुख हो अपने वाणों द्वारा उन्हें भी निवार दिया । यह देख हारने पार्थसे कहा कि तुम विलम्ब क्यों कर रहे हो । क्या वैरियोंके सुभटोंके साथ तुम्हें गुरुशिष्य कैसा युद्ध करना युक्त है ? सुन कर अर्जुन हाथमें तलवार ले शत्रुकी सेनामें मार्ग करता हुआ चला । यह देख द्रोणने उससे कहा कि अर्जुन, ठहरो, तुम कहाँ जा रहे हो। यह सुन पार्थने हॅसते हुए कहा कि गुरुवर्य, आप युद्ध न कीजिए । आपको यह युक्त नहीं है। कारण हम सब आपहीके पुत्र हैं। आपके लिए तो जैसे ही अश्वत्थामा और जैसे ही हम सव और विष्णु हैं । फिर आपको हमारे साथ युद्ध करना युक्त है क्या? गुरुवर्य, पिता-पुत्रोंका दुःखपद युद्ध शोभा नहीं देता । व्यर्थ ही इसमें योद्धाओंका संहार होता है । इस लिए प्रभो, आप युद्धके संकल्पसे लौट जाइए-युद्ध न कीजिए | पांडवोंकी इस प्रार्थनासे