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पाण्डव-पुराण
न कर सकनेके कारण वह दुर्योधनके पास गया और उससे कहने लगा कि कि मैं वड़ा भयभीत हो रहा हूँ। मुझ पर बड़ा संकट आनेवाला है, अतान तो वनमें जाकर निर्दोष तप धारण करूँगा, जहाँ कि फिर अर्जुनका भय कभी कानों तकमें भी सुनाई नहीं पड़ेगा! धनंजय ऐसा वली है कि जब वह धनुष-घाण लेकर युद्ध में रहता है तब सुर-असुर कोई भी उसका सामना करनेके लिए समर्थ नहीं होते। ___ यह सुन द्रोणने कहा कि सुमति, मेरे वचन सुनो । देखो, इस संसारमें कोई भी पुरुष अजर अमर नहीं हैं । एक दिन सभीको जराके मुंहमें होकर कालके गालमें जाना है । तब फिर क्षत्रियोंका युद्ध-स्थलको पीठ दिखाना संसारमें शोभा नहीं देता । अतः यदि शक्तिशाली पुरुषका मस्तक चला जाये तो भले ही चला जाये । इसमें भय ही काहेका है। और यदि जीत हो गई तो थोड़ी ही देरमें उन वीरोंके हाथमें जय-लक्ष्मी आ जाती है । अत एव मरनेसे तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिए । और एक बात यह भी है कि आज सूर्यास्तके समयमें ही अर्जुन यमलोकको प्रयाण कर जायगा, क्योंकि उसकी प्रतिज्ञा ही ऐसी है। फिर बताओं तुम्हें मारेगा ही कौन ? तुम निश्चिन्त होकर रहो, डरो मत । यई सुन कर जयाई जयकी वाञ्छासे थिर हो गया और उसने सारी चिन्ताएँ छोड़ दी।
रात वीत चुकी । सवेरा हुआ। धनंजयका जाजूस युद्धकी खबर लानेको रवाना हुआ। उसे एक आदमी मिला । उससे उसने पूछा कि रणमें जयाका स्थ कैसे जाना जायगा-उसकी विशेष पहिचान क्या है । उस आदमीने उत्तरमें कहा कि कौरव राजोंने बड़ा विषम चक्रव्यूह रचा है । उसके भीतर उन्होंने जयाको रक्खा है, अतः वह दिखाई तक नहीं पड़ता, उसके पहिचाननेकी तो वात ही जुदी है । वात यह है कि वह इतना सुरक्षित है कि उसे मनुष्यकी तो बात ही क्या है देवता भी नहीं देख सकते । यह समाचार सुन कर अर्जुनने कहा कि जयाकी चाहे देव ही क्यों न रक्षा करें; परन्तु मैं उसे आज बिना मारे छोड़नेका नहीं। यह कह कर वह एक यक्षके चबूतरे पर कुशासन डाल कर स्थिरतासे बैठ गया और धीरजके साथ शासन-देवताकी आराधना करने लगा । वह थिर चित्त मन-ही-मन साशन देवतोंसे संबोधन करके बोला कि यदि मैंने जिनदेव, जिनधर्म और गुरुकी सच्चे दिलसे आराधना की है तो हे शासनदेवते, तुम प्रगट होकर मेरी सहाय करो। यह जिन-देवका ध्यान कर ही रहा था कि