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पाण्डव-पुराण । छोड़ कर नीच राजोंने एक साथ मिल कर अन्यायसे अभिमन्युको मार डाला है। . सुनते ही पार्थको मूर्छा आ गई और वह पृथ्वी पर धड़ामसे गिर पड़ा। इसके बाद उसे जव चेतना हुई तब वह भी शोकपूर्ण हो बड़ा विलाप करने लगा कि : पुत्र, तुम्हारे बिना पृथ्वीका पालन करनेके लिए कौन समर्थ है । तुम्हारे विना कौन तो राज्य भोगेगा, कौन कुलकी रक्षा करेगा तथा कौन वैरियोंको जीतेगा। इसी समय वहाँ कृष्ण आ गये और बोले कि पार्थ, आज केवल तुम्हारा पुत्र ही नहीं गया, किन्तु वह मेरी सेनाको एक विधवा स्त्रीकी भॉति कर गया है। वह मुझे बड़ा प्यारा था । आज वह मुझे दुर्लभ हो गया है । अतः भाई, इस वक्त शोक न करो, क्योंकि अभी शोक करनेका मौका नहीं है । यदि इस वक्त तुम शोक करोगे तो इससे शत्रु वड़े खुश होंगे और उनका साहस बहुत बढ़ जायगा । इस लिए हे धर्म-विशारद, तुम धीरज धरो और युद्धमें शत्रुओंका ध्वंस करो । बात यह है कि अभिमन्युके मारनेवालेको उसके अपराधका फल चखा देना इस समय तुम्हारा पहला कर्तव्य है।
उधर अभिमन्युकी मृत्यु सुन कर सुभद्रा भी मूञ्छित हो ऐसे गिरी जैसे जड़से उखाड़ दी गई वेल चेतना रहित हो गिर पड़ती है । इसके बाद जब वह कुछ होशमें आई तब हा हा पुत्र कहती हुई विलाप करने लगी । हा पुत्र, तुम सहायके विना मृत्युके ग्रास बन गये! यदि कोई तुम्हारी सहाय पर होता तो तुम्हारी ऐसी हालत कभी न होती । हा पुत्र, तुम इस दुस्तर शरोंके बिछौने पर कैसे सो गये ! क्या किसीने तुम्हारी रक्षा नहीं की ? हा प्रभो, युधिष्ठिर ! आपने भी मेरे पुत्रकी रक्षा नहीं की । अव आपके महलमें ऐसा कुलदीपक पुत्र फिर कौन अवतार लेगा। हा भीम, आपने अभिमन्युको क्यों नहीं बचाया । हे प्राणप्यारे, धीर धनंजय, तुम्हें तो अपने प्यारे पुत्रकी रक्षा करनी थी । हा प्यारे भाई कृष्ण, इस महान् भयंकर युद्धमें आपने भी माणोंसे अधिक प्यारे मेरे पुत्रकी परवाह न की। हा, गुणोंके भंडार बली पुत्रकी किसीने भी रक्षा न की । देखो, आज अभिमन्युके वियोगसे सारे नगरके लोग दुःखी हो रहे हैं।
___ हाय ! मेरे कृष्णके जैसा सुखी, पृथ्वी-पालक भाई है। युधिष्ठिर, भीम जैसे उत्तम पुरुष जेठ हैं तथा पावनमना और पृथ्वीकी रक्षा करनेवाले वीर अर्जुन स्वामी हैं फिर भी मुझे आज रोना पड़ा और मैं इस तरह निराधार हो गहे ।