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पाण्डव-पुराण ।
सुलक्षणास लक्षित द्रोण भी शत्रु-दलको भयभीत करता हुआ चला । कलिंग और . कर्ण भी युद्ध-स्थलमें पहुंचे। दोनों ओरकी सेनाकी मुठ भेड़ हुई। अभिमन्युने थोड़ी ही देरमें कलिंगके हाथीको मार गिराया और कर्णके गर्वको खर्व कर दिया। एवं उसने द्रोणको भी जराकी नाँई अपने शस्त्र-महारसे वातकी बातमें जरित कर दिया। बात यह है कि अभिमन्युने जहाँ जहाँ युद्ध किया वहाँ वहाँ सब -जगह ही उसने विजय पाई । उस समय ऐसा कोई वीर न था जो युद्ध में उसका सामना करता । और यह सच है कि मतवाला होने पर भी हार्थी सिंहका सामना नहीं कर सकता। उस समय रण-स्थलमें घोड़े, हाथी, रथ पियादे वगैरह कोई भी ऐसे न वचे जो अभिमन्युके वाणके लक्ष्य न हुए हों; उसके वाण द्वारा न वेधे गये हों।
यह देख अपनी सेनाकी रक्षा करते हुए वीर अक्षयकुमारने दस वाणोंको छोड़ कर अभिमन्युको घायल कर दिया। तव वह सुध-बुध रहित हो पृथ्वी पर गिर पड़ा। बाद थोड़ी देरमें जब उसकी मूछी दूर हुई , तब वह फिर उठ खड़ा हुआ और धनुष लिये दौड़ कर आते हुए तेजस्वी अश्वत्थामाको उसने अपने वाणोंकी मारसे एक क्षणमें ही विमुख कर दिया । यह देख, कर्णने द्रोणाचार्य से पूछा कि गुरुवर्य, अभिमन्युने लक्ष्मणको आदि लेकर हजारों कुमा-' रोको यमलोक पहुंचा दिया । परन्तु उसे कोई भी नहीं मार सका। तब बताइए कि वह भी इस काल जैसे कराल युद्धमें मरेगा या नहीं । सुन कर द्रोणने कहा कि कर्ण, भला तुम्ही कहो कि जिस रणशौन्डीरने अकेले ही इतने वीर राजोंको पछाड़ दिया है उसे कौन मार सकता है ! इसके बाद रणनाद करते हुए द्रोणने क्रोधित हो राजा लोगों से कहा कि मारो मारो, इसे मार डालो और इसका धनुष छीन कर तोड़ डालो ! देखो वह भागने न पावे। द्रोणकी वीर वाणी सुन कर राजा लोग जोशके साथ उठे और न्याय-अन्याय कुछ न गिन कर रणनाद करते हुए वे एक साथ उस पर टूट पड़े। परन्तु उस बलीने अकेले ही उन सबसे युद्ध कर क्षणभरमें ही उन्हें पराजित कर दिया। लेकिन थोड़ी ही देरम पुनः उद्यत हो वे सब बड़े जोशके साथ फिर युद्धके लिए आ डटे और उन्होंने कुमारका पताका सहित रथ छिन्न-भिन्न कर डाला । यह देख अभिमन्युने वज. दण्ड हाथमें लेकर बातकी बातमें उन सघको चूर डाला। .
. इसी समय ‘जयाने अभिमन्युको अपने महा शरोंके द्वारा वेध दिया; परन्तु तब भी वह धीरजके साथ उसके सामने स्थिर हो इदा रहा । अन्तमे वह.