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पाण्डव-पुराण । विताई। बाद संवरा हुआ। सूरजका उदय हुआ । ऐसा जान पड़ा कि मानों सूरज पितामहका शोक मनानेके लिए ही आया है। ___अनंत मनुष्योंको धारण करनेवाले इस संसार-चक्रमें जीव मेघ-समूहकी । भाँति बिखर जाते हैं, लक्ष्मी विजलीकी नाँई चपल है, जीवन संध्याके रागकी प्रभाके समान चंचल है और स्वजन-सुत-सुख आदि जलकी कल्लोलोंकी भॉति विनश्वर हैं।
इस प्रकार सब बातोंको जान कर सच्चे श्रद्धानी लोगोंको चाहिए कि वे शुद्ध-धर्ममें बुद्धि लगावें।
जो शुभमति महान् ब्रह्मचारी पितामह युद्धमें धर्मकी प्रतिज्ञा कर और अपने आत्माको शान्त रख कर पाँचवें ब्रह्मस्वर्गको प्राप्त हुए उनकी जय हो।
और उन धर्मात्मा, धर्मके ज्ञाता, नय-कुशल युधिष्ठिरकी भी जय हो जो धर्मके बलसे शुभ नय-ज्ञानको प्राप्त हुए और जिन्होंने पापसे अपने आत्माको सुरक्षित रक्खा।