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पाण्डव-पुराण। घाणोंकी अविरल वर्षासे उसने हाथियोंकी सूड़ोंको, घोड़ोंके ऊँचे पाँचोंको
और रथोंके पहियोंको एकदम छेद डाला । इसके सिवा उस जयके अर्थीने मर्मकी भाँति शूरोंके कवच भी अपने दिव्य गांडीव धनुषके द्वारा छेद दिये।
यह देख कर पितामहकी निंदा करता हुआ दुर्योधन वोला कि तात, तुमने यह पराजयकारी युद्ध क्यों शुरू कर रक्खा है । इस तरह युद्ध करिए, जिससे अर्जुन युद्धमें ठहर ही न सके । भला, वैरीके आगे आ उपस्थित होने पर कौन ऐसा सुभट होगा जो आपकी भाँति निश्चित हुआ बैठा रहेगा। दुर्योधनकी यह मर्मभेदी वाणी सुन कर गांगेय पार्थके साथ युद्धके लिए फिर बड़ी वीरतासे उद्यत हुए । यह देख अर्जुनने उनसे कहा कि पितामह, आपका मेरे साथ युद्ध करना व्यर्थ है । मैं अभी आपको यमालय भेज कर इस युद्धको समाप्त किये देता हूँ।
इसके बाद ही वे दोनों सुभट बड़ी क्रूरतासे युद्ध करने लगे। इसी बीचमें द्रोण आकर धृष्टद्युम्न पर झपटे और उन्होंने महायुद्ध कर थोड़ी देरमें ही धृष्टघुम्नके रथकी धुजा हर ली । यह देख धृष्टार्जुनने द्रोणके, छत्र, धुजा आदिको हर लिया । तब शत्रुको दुःख देनेवाले द्रोणने धृष्टार्जुन पर शक्तिबाण छोड़ा, जिसको कि उस वीर धृष्टार्जुनने आधे क्षणमें ही छेद दिया।
___ यह देख धृष्टार्जुनने पितामहके ऊपर गदा चलाई और पितामहने उसे बीचमेंसे ही वारण कर दिया।
___ इसके बाद गदा वारण कर घाँये हाथमें ढाल और दाहिने हाथमें तलवार लेकर युद्धके लिए तैयार हो द्रोण आये । उधर हाथमें गदा लेकर भीम दौड़ा और उसने महोन्नत कलिंग-पुत्रको मार गिराया । एवं वलसे उद्धत होकर वह कौरवोंको त्रास देता, दिशाओंको कष्ट-मय बनाता और रणमें शत्रुओंको दलता क्रीड़ा करने लगा । उसने अपनी गदाके आघातसे वैरियोंके साथ-साथ सातसौ रथोंको भी चूर डाला और उनसे पृथ्वीके बिलोंको पूर दिया । इस प्रकार रणोद्धत बलवान भीमने अपनी गदाके बलसे एक हजार हाथियोंको चूर करके जय-लक्ष्मीको प्राप्त किया।
इसी बीचमें छेदन-कला-निपुण वीर द्रोणाचार्यने धृष्टार्जुनकी उज्ज्वल तलवारको छेद दिया; जैसे कुठार वृक्षको छेद देता है । उधर अभिमन्युने द्रोणका रथ छिन्न-भिन्न कर दिया । इतनेमें दुर्योधनका पुत्र सुलक्षण लक्ष्मण आ धमका