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________________ बीसवाँ अध्याय। ३१७ Mw www धराशायी हो गया और जिन भगवानका स्मरण करते हुए मर कर स्वर्गमें देव हुआ। __ इसी समय सूर्य अस्ताचलगामी हुए । रात हो गई । जान पड़ता था मानों रण बन्द करने और घायल मनुष्योंका पता लगानेके लिए दयादेवी ही आई है। उभय पक्षोंकी सेनायें अपने अपने डेरेको चली गई। रण बन्द हो गया। वाद जव घायलोंका पता लगाया गया तब जान पड़ा कि विराटके पुत्र श्वेतका देवलोक हो चुका है । यह सुन विराटको बड़ा दुःख हुआ । पुत्र-वियोगमें वह बड़ा विलाप करने लगा । हा पुत्र! युद्धमें तेरी किसीने भी रक्षा न की । हा धर्मात्मा धर्मपुत्र, क्या तुमने भी मेरे प्यारे पुत्रकी रक्षा न की । हे भीममूर्ति भीम तथा शत्रु-समूहके लिए अग्नि जैसे हे धनंजय, आपके देखते हुए मेरे पुत्रको वैरीने कैसे मार डाला! विराटकी वह दशा देख, क्रोधमें आकर बुद्धिमान युधिष्ठिरने दृढ़ प्रतिज्ञा की कि मैं आजसे सत्रहवें दिन तक शल्यको अवश्य ही मार डालूंगा । यदि न मार सका तो अपने मानको छोड़ कर आप लोगोंके देखते हुए ही आगमें कूद पढूंगा और अपनेको भस्म कर दूंगा। वैरियोंका विध्वंस करनेवाले शिखंडीने यह प्रतिज्ञा की कि मैं आजसे नौवें दिन पितामहको अवश्य ही धराशायी कर दूंगा । यदि नहीं करूँ तो मै भी अपने आपको आगमें होम दंगा। इसी तरह धृष्टद्युम्नने यह कहा कि मैं युद्धके लिए उद्यत हिरण्यनाम सेनापतिको अवश्य ही यमलोक दिखाऊँगा। ___ इसी समय अँधेरेको दूर करके योद्धा लोगोंका हाल देखनेके लिए ही मानों सूरजका उदय हुआ। फिर क्या था, दोनों ओरके वीरोंने फिर भयंकर युद्ध आरम्भ किया और वे महायुद्ध करके एक दूसरेके शरीरोंको छेदने लगे। एवं क्रोधमें भर कर हाथी हाथियों के साथ, रथ रथोंके साथ, घोड़े घोड़ोंके साथ, पयादे पयादोंके साथ युद्ध करनेको उद्यत हुए । इसी समय धनंजय वीर सुभटोंके ऊपर टूट पड़ा और उनको क्षणभरमें ही तितर-बितर कर डाला; जैसे सिंह मदोन्मत्त हाथियोंको तितर-बितर कर देता है । धनंजयकी विजय हुई । यह देख पितामहने असंख्य वाणोंके द्वारा अर्जुनको पूर कर आगे बढ़नेसे रोक दिया जैसे जलको नदीके किनारे रोक देते हैं । इस प्रकार अनंत बाणबरसा कर गांगेयने सारे आकाशको ही बाणोंसे भर दिया । यह देख पार्थने उन सब बाणोंको अपने एक बाणके द्वारा ही निष्फल कर दिया । और अपने
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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