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________________ पाण्डव-पुराण। द्वारा उनकी ध्वजाको छेद दिया । उसे देख यह जान पड़ता था मानों उसने पहले पहल कौरवोंके उन्नत महत्वको ही छेद दिया है । वाद इसके गांगेयने भी अपने वाणों द्वारा अभिमन्युकी धुजाको छेद डाला । तब अभिमन्युने उनके सारथीको वाणसे वेध कर पितामहके हाथों और धुजाको भी वेध दिया । यह देख विद्वानोंने उसकी बड़ी तारीफ की कि अभिमन्यु साक्षात् पार्थ ही है । यह बड़ा धीरज-धारी है और इसकी स्थिरता संसार-मसिद्ध है । इस एक ही वालकने सैकड़ो वरियोंको नष्ट किये हैं; जैसे निरंकुश हुआ एक ही हाथी सब नष्ट कर डालता है । इतनेहीमें पार्थके सारथी उत्तर कुमारने दूसरे रण-स्थलमें रणके लिए भाला, तलवार और धनुष लिये हुए शल्यको ललकारा । यह देख शल्यको बड़ा क्रोध आया। उसने उसे एक वाणहीमें मार गिराया। उस वक्त उसे युद्ध भूमिमें गिरा हुआ देख कर यह जान पड़ता था कि मानों पार्थका प्रचंड भुजदण्ड ही गिर पड़ा है । अपने बड़े भाईकी यह दशा देख कर विराटका दूसरा पुत्र श्वेतकुमार दौड़ा आया । और उसने उसी वक्त शल्यके धुजा-छत्र और अत्र वगैरह छेद कर उन्हें पृथ्वी पर गिरा दिये । इसी समय क्रोधसे जलते हुए पितापह दौड़े। उन्हें श्वेतने बहुत रोका । पर जब वह न रुके तब उसने उन्हें शरोंकी वर्षासे विल्कुल ही ढंक दिया । यहाँ तक कि वह देख ही न पड़ने लगे; जैसे मेघोंके द्वारा ढंक जाने पर सूरज नहीं देख पड़ता है । यह देख इसको मारो, छोड़ो मत, यह कहता हुआ दुर्योधन दौड़ा आया । परन्तु जैसे आगको जल वुझा देता है वैसे ही पार्थने उसे जहॉका तहाँ रोक दिया; आगे न बढ़ने दिया और गांडीव धनुष हाथमें लेकर उसने दुर्योधन पर एक साथ सैकड़ों बाण छोड़े। परंतु उससे दुर्योधनकी कुछ हानि न हुई । तब वे दोनों ही वीर भाला, तलवार आदिके द्वारा प्रहार करते हुए मदमत्त होकर परस्परमें भीषण युद्ध करने लगे । उधर इस महायुद्ध में युद्ध करते हुए उस विराट कुमार श्वेतने पितामहक धनुष, छत्र, धुजा आदि छेद दिये और उनके वक्षःस्थलमें तलवारका एक ऐसा आघात किया कि जिससे कौरवोंकी सारी सेनामें हाहाकार मच गया । इस वक्त देवतोंने आकाशसे दिव्य स्वरमें कहा पितामह, कायर मत हो, धीरजका शरण लो । हे वीर, इस महायुद्धमें वीरोंका संहार करो-घबड़ाओ मत । यह सुन कर पितामहने सावधान हो स्थिरतासे हथियार हाथमें उठाया और लक्ष्य वाँध कर श्वेत पर एक साथ सैकड़ों ही बाणोंको छोड़ा, जिससे वह लगे। उधर इसम आदि छेद दिये आसारी
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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