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बीसवाँ अध्याय |
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वह शोक-जनित श्रम दूर करनेको पच्छिम समुद्र में स्नान करनेकी मनसासे अति शीघ्र ही पच्छिमकी ओरको चला गया । तव रात हुई जान कर मरे हुए भटकी यथायोग्य व्यवस्था करके राजे लोग भी अपने अपने ढेरों पर आ गये ।
'इसके बाद जरासंध ने अपने मंत्र - कुशल मंत्रियोंसे कहा कि सेनापतिके पद पर अबकी बार और कोई ऐसा समर्थ पुरुष नियत करना चाहिए जो शत्रुओं पर दबाव डाल सके। यह सुन मंत्रियोंने सम्मति करके बड़े हर्ष के साथ सैनिक पद पर गेवकको स्थापित किया । इसी समय उधर दुर्योधनने पांडवोंके पास दूत भेज कर उनसे यह कहलवाया कि आज तक मैंने तुम लोगोंको जो जो दुःख दिये हैं उन्हें याद करके तुम लोग स्वयं ही अति शीघ्र युद्धके लिए क्यों नहीं आते । सच कहता हूँ कि मैं अब तुम लोगोंको जीता न छोडूंगा, चाहे लोग तुम्हारी और तुम्हारे शासनकी कितनी ही तारीफ क्यों न करें । यह सुन कर समर्थ पांडवोंने दूतसे कहा कि जाकर अपने स्वामीसे कह दो कि यम-पुर जानेके लिए अब वह तैयार हो जाये । हम जरासंधके साथ-साथ उसे भी यमालयका अतिथि बनावेंगे । यह सुन कर दूतने अति शीघ्र जाकर धार्तराष्ट्रों से वह सब हाल निवेदन किया । उसी समय मानों वह सब देखने के लिए ही सुरज उदयाचल पर उदित हुआ । तब भटको उत्साहित करनेके लिए प्रातःकालीन मंगल बाजे जे । सव योद्धा युद्धके लिए तैयार हो युद्ध-स्थल में पहुँचे । उन्हें देख रथ में बैठे हुए पार्थने अपने सारथी से कहा कि मुझे बताओ कि रथोंमें कौन कौन राजे हैं । सारथी उनके घोड़ों और धुजाओंको बताळाता हुआ बोला कि राजन्, देखिए तालकी धुजावाले रथमें बैठे हुए पितामह है । उनके रथमें काले घोडे जुते हुए हैं । यह लाल घोड़ोंवाला द्रोणका रथ है और उस बलीकी कलशकी धुजा है । नागकी धुजावाला और नीले घोडोंवाला धनुर्धर दुर्योधन है । पीले घोडोंवाला वह रथ दुःशासनका है, जिसमें कि जालकी धुजा लगी हुई है । वह सफेद घोडोंवाला अश्वत्थामाका रथ है । उस पर वानरकी धुजा फहराती है । वह लाल घोड़ोंवाला रथ जिस पर कि सीताकी धुजा है, शल्यका है । कोलकी धुजावाला और लाल घोड़ोंवाला वह रथ जयद्रथका है । इस प्रकार सब राजोंका परिचय प्राप्त कर अर्जुन युद्धके लिए उठा । उस समय हाथियोंकी घटाओंके साथ स्वामी के कार्यमें तत्पर योद्धा रण-साज सज कर युद्ध-स्थलमें आये । उधर अभिमानसे भरे हुए पितामह वहाँ आये । आते ही वह धीर-बुद्धि अपने धनुष पर डोरी चढ़ा कर अभिमन्युके ऊपर टूटे । अभिमन्युने एक क्षणमें ही अपने वाण