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________________ पोण्डव-पुराण | इसके बाद चक्रव्यूह भेदनेके लिए दृढ़-प्रतिज्ञ कृष्णने तीन शूरवीरोंको अपने साथमें लिये और जाकर थोड़े ही समयमें जरासंधका चक्रव्यूह भेद दिया; जैसे वज्र पहाड़को भेद डालता है । यह देख जरासंघको बड़ा क्रोध आया। उसने शत्रुका नाश करने के लिए दुर्योधन आदि तीन योद्धाओंको भेजा । तत्र दुर्योधनके साथ पार्थ, विरूप्यके साथ रथनेमि और हिरण्यनाभके साथ युधिष्ठिर उधरसे भी महायुद्ध करनेको उद्यत हुए | ये सब युद्ध-प्रवीण योद्धा हुंकार शब्द करते हुए परस्पर में युद्ध करने लगे । उन्होंने बहुत देर तक युद्ध किया और बहुतसे घोड़े, हाथी, और रथोंको चूर डाला | उनके उस वक्तके युद्धको देख कर शूरवीर तो युद्धको तैयार हुए और कायर भागने के लिए मार्ग सोधने लगे । यह देख नत्योद्यत नारद आदि देवगण बड़े हर्षित हुए । इस वक्त दुर्योधनने अर्जुनसे कहा कि पार्थ, उस वक्त तो आग में जलने से भाग्य से तुम बच गये ! अब व्यर्थ फिर अहंकार क्यों कर रहे हो । तुम्हें कुछ लज्जा नहीं आती जो सजे हुए मेरे सामने खड़े हो । यह सुन कर धनुष हाथमें ले, प्रलय कालके मेघोंकी भाँति गर्जते हुए उस विघ्न समूहको हरनेवाले वीर अर्जुनने धनुषका भयावना शब्द किया और फिर बातकी वातमें उसने शरोंसे दुर्योधनको पूर दिया तथा उसका धनुष भी छेद डाला । परन्तु इतने में ही उनके वीचमें जालंधर राजा आ गया और उसने पार्थके साथ अत्यन्त घोर, दुर्धर संग्राम किया । ३१४ wwwwww इसके बाद रूप्यकुमार युद्ध-स्थल में उतरा और उसने पार्थसे कहा कि सुलक्षण, आप अन्याय पक्ष काहेको लेते हैं। देखो, यह विष्णु पर-कन्याका हरनेवाला बड़ा अन्यायी है । यह सुन पार्थने भयंकर चेहरा वना कर उससे कहा कि कुमार, अब तैयार हो, मैं तुम्हें न्याय और अन्याय सब यहीं बताये देता हूँ । यह कह कर धनंजयने एक क्षणमें ही विघ्न-रूप रूपय नाम विद्याधरको अपने शरोंकी भीषण मारसे छेद डाला । इस समय स्थिरतासे युद्धमें उठा हुआ युधिष्ठिर, उन्नतिशील अर्जुन और रथारूढ़ रथनेमि ये तीनों ही जयके लिए उद्यत हुए युद्ध-स्थलमें अपूर्व ही शोभा पाते थे। इसके बाद वे शीघ्र ही जरासंध के चक्रव्यूहको भेद कर, यशस्वी बन कर सज्जनोंको प्रसन्न करते हुए यादवोंके सैन्यमें आ गये । इसके बाद युधिष्ठिरने पुनः युद्ध आरम्भ किया और युद्धमें लहू-लुहान हुए जरासंध के हिरण्य नाम बड़े भारी वीर योद्धाको अनेक वीरोंके साथ यमपुर भेज दिया । उसका वध देख कर सुरजको भी बड़ा खेद हुआ और इसी लिए
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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