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________________ , areaाँ अध्याय | ३११ उड़ी हुई धूलके द्वारा आकाश व्याप्त हो गया, छत्र और धुजाओंके मारे सुरजका प्रकाश रुक गया और रातसी जान पड़ने लगी । धूलके मारे सारा रणांगण अंधकारमय बन गया । इस समयके बाजोंके नादसे ऐसा जान पड़ता था मानों शब्द के बहाने से महायुद्ध सैनिकोंसे यही कहता है कि सैनिको, तुम लोग युद्ध-स्थल छोड़ कर जल्दी चले जाओ, नहीं तो तुम पर बड़ी भारी विपत्ति आनेवाली है । इसके बाद जरासंध ने अपनी सेनामें चक्रव्यूह रचा और कृष्णने अपनी सेनामें तार्क्ष्य व्यूहको रचा । उस समय उभय पक्षकी सेनाओंमें इतनी धूल उड़ी कि सब जगह घोर अन्धकार छा गया । जिससे सूरजके अस्तकी शंका से कौए घोंसलों में घुस गये और उल्लू पक्षी रात समझ कर अपने घू घृ शब्द के द्वारा भोंके स्वरोंकी नकल करते हुए दिनमें ही उड़ने लगे । थोड़ी देरमें दोनों सेनाओं का घोर युद्ध शुरू हो गया । इस रणमें सुभट-गण तलवारें निकाल निकाल कर सुभटोंको मारते थे और भालोंकी तीक्ष्ण नोकोंसे फलकी नॉई शत्रुओंके सिर छेदते थे । कोई मतवाले जोरकी गर्जना करते हुए अपनी गर्जनाके आघातसे ही शत्रुओं के हृदयों को भेदते थे; जैसे वायु मेघोंको भेदता है। कोई हाथियोंके कुम्भोको विदार कर उनके रक्तकी धारासे केसरकी भाँति दिशाओंको लाल करते थे । इस वक्त जरासंघकी सेनाने विष्णुकी सेनाको कुछ ठंडा कर दिया जैसे जलप्रवाह जलती हुई - आगको ठंडा कर देता है । यह देख अपनी सेना के योद्धाओंको धीरज देता हुआ शंबुकुमार युद्धके लिए उद्यत हुआ और उसने शत्रु दलके योद्धाओंको वीरतासे इधर उधर भगा दिया । तब शंबुकुमारके साथ युद्ध करनेको क्षेमविद्ध नाम एक विद्याधर उठा । शंबुने उसे बातकी बात में ही रथ - विहीन कर दिया | अपनी दुर्दशा देख वह उसी वक्त भाग गया । इसके वाद शंके साथ युद्ध करनेको एक दूसरा विद्याधर उठा और वह तलवारों द्वारा युद्ध करने लगा; परन्तु शंबुने उसे भी वारण कर भगा दिया । इसके बाद युद्धमें शत्रुओं को पछाड़ देनेवाला कालसंबर राजा बड़े साहस के साथ युद्धमें आया । यह देख सूरजकी भाँति दीप्तिशाली प्रद्युम्न शंबुको युद्ध करनेसे रोक कर स्वयं मेघ जैसे जल वर्षाते हैं वैसे ही शर-धाराको छोड़ता हुआ उसके सामने आया । उसने कालसंवरसे कहा कि प्रभो, आप मेरे पिता तुल्य हैं, इस लिए आपके साथ युद्ध करना मुझे उचित
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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