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________________ पाण्डव-पुराण। के मंत्री को देख कर दुर्योध्य मा हुए दुर्दर गीधरह कर बैठे सूर्यग्रहण पड़ा । मेघने जल वरसा कर उसकी सारी सेनाको जलसे पूर्ण कर दिया । सेनाकी धुजाओं पर सूरजकी ओर मुंह कर बैठे हुए कौए वोले । छत्रोंके ऊपर क्रोधसे भरे हुए दुर्द्धर गीध पक्षी वैठे देख पड़े । इन : अपशकुनोंको देख कर दुर्योध्य दुर्योधनने अपने सुचतुर मंत्रीको बुला कर पूछा कि मंत्री महोदय, ये खोटे निमित्त क्यों देख पड़ रहे हैं । इस पर मंत्रीने कहा कि देखो, यह वह भयानक कुरुक्षेत्र है जो मछलीकी नॉई सयको निगल जायगा । अच्छी बात है, कह कर दुर्योधनने फिर पूछा कि मंत्री महाशय, मतलवकी बात बताइए कि शत्रुकी सेना कितनी है और युद्धके लिए उद्यत योद्धा कितने हैं । मंत्रीने कहा कि राजेन्द्र, वलशाली दक्षिणके जितने राजा हैं वे सव नारायणके सेवक हो चुके हैं । रणमें नष्ट होनेवाले बहुतसे राजोसे तो क्या हो सकता है, पर उनमें एक ही अर्जुन ऐसा है जो सबसे समझ लेगा। उसने पहले भी रणमें झूठ ही वीरताकी डींग हॉकनेवाले बहुतसे वीरोंको चूर डाला था । सच तो यह है कि विष्णुको कोई देवता या मनुष्य युद्धमें जीत नहीं सकता। आप जानते हैं हरिकी पक्षमें बलभद्र है, जो मूशल और हलोंकी मारसे वैरियोंके उदर फाड़ डालता है-उसके सामने कोई भी नहीं उठ सकता वह बड़ा दुर्धर है । और उस प्रद्युम्नको रणांगनमें कौन निवार सकता है जिसे कि शत्रुका विध्वंस करनेवाली प्रज्ञप्ति आदि विद्याऍ सिद्ध हैं । तथा उस पवित्र भीमको अपनी छाती परसे कौन हटा सकता है जो शत्रु-समूहको वातको बातमें ही धराशायी कर देता है । इस प्रकारके हरिकी सेनामें और भी बलशाली विद्याधर राजा हैं जो असंख्य हैं और महायुद्धमें इधरसे उधर घूमते हुए दिखाई दे रहे हैं । राजन्, शत्रुघातक विष्णुके पास सात अक्षौहिणी सेना है। दुर्योधनने सव हाल जरासंघसे कहा; परंतु तब भी वह कुछ न चेता; और क्रोधमें भर कर उस मदांधने कहा कि ओह, गरुड़के सामने सॉप कितना , फण फटकारेगा | क्या सूरजकी किरणों के आगे अँधेरा कहीं ठहर सकता है ? वैसे ही ये राजा-गण मेरे सामने भी कैसे ठहर सकेंगे । यह कह कर तीन खंडका स्वामी प्रचंड आत्मा जरासंध कायरोंका खंडन करता हुआ अखंड और प्रचंड धनुषको हाथमें ले रण-स्थलकी ओर रवाना हुआ। फिर क्या था, बाजोंके शब्दोंके द्वारा दिशाओंको पूरते हुए और छत्रोंके द्वारा आकाशको ढंकते हुए राजा लोग भी युद्धके लिए उद्यत हो चले । इस वक्त सेनाके द्वारा
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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