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________________ बीसवाँ अध्याय। wwmmwwwwwwwwwwwwwww तुम्हारे भाई हैं। यह सुन कर्णने उत्तरमें कहा कि दूत, मेरी बात सुनो । न्यायके कारण मुझे इस वक्त यहाँसे वहाँ जाना योग्य नहीं है । नीति यही है कि युद्ध छिड़ जाने पर राजा लोग न्यायको नहीं छोडते । और इसी तरह सुसेवित भूपको युद्ध-समयमें मृत्य-गण भी नहीं छोडते । और जो ऐसा करते हैं समझो कि वह अन्याय करते हैं । लोग उनकी निंदा करते है । हॉ, इतना मैं अवश्य करूँगा कि युद्ध बन्द हो जाने पर बलवान पांडवोंको कौरवोंसे राज्य नियमसे दिला दूंगा। इसमें तुम तनिक भी सन्देह मत करो। यह कह कर उसने दूतसे चले जानेके लिए कहा । दूत भी वहाँसे चल कर कौरवों-सहित बैठे हुए जरासंधक पास पहुंचा। वहाँ उसने जरासंधको नमस्कार कर यह कहा कि राजन् जरासंध, आप महाभाग यादवोंके साथ सन्धि कर लीजिए। नहीं तो जिनदेवकी यह सच्ची वाणी सुनिए कि "इस महायुद्धमें कृष्णके हाथसे आपकी मृत्यु होगी। पितामहकी मृत्यु शिखंडीके हाथसे होगी और धृष्टार्जुनके हाथसे द्रोणाचार्यकी मृत्यु होगी । इसके सिवा शल्यका युधिष्ठिरके हाथसे और दुर्योधनका भीमके हाथसे मरण होगा। और इसी प्रकार जयद्रथका अर्जुनके हाथ से और कुरु-पुत्रोंका अभिमन्यु कुमारके हाथसे वध होगा । इसमें तुम तनिक भी सन्देह न करो । क्योंकि भवितव्य ही ऐसा है"। यह कह कर दूत अति शीघ्र द्वारिका पहुंचा । वहाँ उसने कृष्णको प्रणाम कर कहा कि देव, जरासंघकी सुदारुण सेना कुरु-क्षेत्रमें पहुंच चुकी है और कर्ण किसी तरह भी यहाँ आना स्वीकार नहीं करता । वह युद्ध-स्थलमें उपस्थित है । देव, अब आपको भी कुरु-क्षेत्रमें पहुंच कर इस महायुद्धमें शत्रु-योद्धाओंके साथ घोर युद्ध करना होगा । इसके बाद ही रणभेरी दिलवा कर अपने पाँचजन्य शंखके नादसे आकाशको कॅपाता, हुआ कृष्ण कुरुक्षेत्रको चले । और जलको थल और थलको जल करती हुई उसकी सेनायें चलीं । जान पड़ता था मानों पृथ्वीके साथ-साथ नहरें ही बहती हुई चली जा रही हैं । इस समय सेनाके द्वारा उड़ी हुई धूलसे सारा आकाश ढक गया । सूरज कहीं दिखाई ही न देता था। कृष्णकी अनंत चतुरंग सेनासे सारा भूतल भर गया । बाजोंकी आवाजसे दिशायें शब्द-मय हो गई । सजे हुए दिग्गज चिंघाड़ने लगे । इस प्रकार अपनी सेनाको लेजा कर यादवोंने उसे कुरु-क्षेत्रके वाहिरी भागमें ठहराया। इस वक्त जरासंध चक्रीकी सेनाको हारके सूचक बार बार बहुतसे अपशकुन हुए और इसी समय संसारको भय उत्पन्न करनेवाला आकाशमें
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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