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________________ पाण्डव-पुराण। और जब वह और और पांडवों के साथ काम-क्रीड़ा करती थी उस वक्त युधिष्ठिर उसके जेठ हुए, जो कि पितासे कम नहीं होता। ऐसी हालतमें वह युधिष्ठिरको कैसे भोग सकती थी। यह सब बड़े ही अचंभेकी कहानी है ! हे भगवन् ! इस कथाको कह कर या सुन कर कुछ भी फलकी इच्छा करना वालूको पेल कर तैल और जलको विलो कर घीकी इच्छा करना है । तात्पर्य यह कि जैसे वालूको तेलके लिए पेलना और पानीको घीके लिए बिलोना व्यर्थ है वैसे ही यह कहानी भी व्यर्थका वारजाल है । इसमें कुछ भी सार और सचाई नहीं । तव इसको कहने या सुननेसे फलकी आशा ही क्या हो सकती है । या यों कि जिस तरह फलकी आशा कर शिला पर वीज वोना किसी कामका नहीं उसी तरह मनोरथ-सिद्धिकी लालसासे ऐसी कथा बतानेवाले पुराणको कहना या सुनना भी किसी प्रयोजनका नहीं । हे प्रभो ! मेरे हृदयमे कुछ और भी सन्देह उठ रहे हैं,अतः आपसे निवेदन है कि आप नीचे लिखी बातोंको समझा कर उन्हें दूर कीजिए और संसारका हित कीजिए। १ गंगाके जलके समान-स्वच्छ गांगेय ऋषिका माहात्म्य, २ द्रोणाचायका पराक्रम, ३ भीमका पराक्रम, ४ हरिवंशकी उत्पत्ति, ५ द्वारिका पुरीकी रचना, ६ कृष्ण और नेमिनाथका बल, ७ जरासिंधका सत्तानाश, ८ कौरव और पांडवोंका वैर, ९ तथा उनके वैरका कारण, १० पांडवोंका विदेश जाना और फिर वापिस लौटना, ११ द्रौपदीका हरण, १२ उत्तर मथुराकी हालत, १३ रकृष्णका मरण होने पर पांडवोंका नेमिनाथ स्वामीके पास आना, १४ पांडवोंके पूर्वभव, १५ द्रौपदीका पंच भरतारीपनेका कलंक, १६ पांडवोंकी दीक्षा, १७ पांड. वॉका शत्रुजय पर्वत पर जाना, १८ वहाँ घोर परीपहोंका सहना, १९ तीन पांडवोंको केवलज्ञान होना, और उनका मोक्ष जाना, २० दो पांडवोंका पंच अनुकत्तरमें अहमिन्द्र पद पाना।। र हे देव ! इन प्रश्नोंके समाधानको सुन कर सभी जीव सुखी होंगे, अतः हे रंसबके हितैपी और सबके हितके लिए तैयार रहनेवाले प्रभो! आप इनका शीघ्र ही समाधान कीजिए । क्योंकि आपको छोड़ कर और कोई भी इन प्रश्नोंको हल नहीं शकर सकता । इस प्रकार वीरप्रभुकी सभामें श्रेणिक महाराजने बहुतसे प्रश्न किये। गये प्रश्न संदेहको मिटानेवाले और सबके हितकारी हैं। इसके बाद जव गौतमगुरु उत्तरमें बोलने लगे तव संसार-तापको दूर करनेवाली उनकी दिव्यवाणीको सुन कर भव्य
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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