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दूसरा अध्याय । women com वाण चला कर उन्हें दुःख दे, यह कहाँ तक उचित कर्तव्य है ? उस वाणके द्वारा वेधा जाकर जव मृग मारा गया तव मृगी बहुत ही दुखी हुई और मैथुन-क्रियामें आसक्त-चित्त उस मृगीने राजाको यह शाप दिया कि मेरे पतिकी नॉई तुम भी अपनी मियाके साथ समागम करते समय ही कालके मुंहमें जाओगे-मरोगे । इस शापको सुन कर राजाको बहुत दुःख हुआ और उसने उसी वक्त प्रतिज्ञा की कि मैं आजसे जन्मभर स्त्रीके साथ समागम ही नहीं करूँगा । भगवन् !
और भी सुना जाता है कि सूरजके सम्बन्धसे कुन्तीने अपने कर्ण द्वारा कर्णको जन्म दिया, पर आज तक कहीं कानसे पैदा हुए मनुष्य देखनेमें नहीं आये । तव कहिए यह कहॉ तक सम्भव बात है ? __इसके बाद कुन्तीका सधर्मके साथ समागम हुआ जिसप्ते उसे गर्भ रहा और उसने युधिष्ठिर जैले योधा पुत्रको जन्म दिया । एवं कुन्तीने वायुके समागमसे निर्भय भीम और इन्द्रके समागमसे अर्जुन (चाँदी) के समान प्रभाषाले गर्जुनको पैदा किया। इसी प्रकार रूप-श्रीसे युक्त माद्रीने भी आश्विनेय सुरके सम्बन्धसे नकुल और सहदेवको जन्म दिया। ये दोनों उत्तम गुणोंके भंडार थे । इन सवको किसी भी वातकी कमी न थी। हे प्रभो! इस कहानीसे जान पडता है कि. पांडव लोग कुंड थे-~-सधवासे उत्पन्न हुए नार-पुत्र थे । अब बताइए कि ऐसे सत्पुरुषोंकी इस मॉनि उत्पत्ति क्यों हुई ? यह बात सची है या मिथ्या ? ।
भीम भारी वलवान, समझदार और बुद्धिका सागर था तथा वारतवमें उसका आहार भी बहुत कम था, पर न जाने लोग क्यों कहते है कि भीम दस मानी अन्न रोज खाता था !
और भी सुनते हैं कि गांगेय ऋषि गंगानदीसे पैदा हुए ? परन्तु हे नाथ ! यहाँ यह तर्क उठता है कि नदियोंसे यदि मनुष्योंकी उत्पत्ति होने लगे तो फिर कोई विवाह ही क्यों करेगा और घर-गिरस्तीके झंझट में ही काहेको फंसेगा ।
कहते हैं कि द्रौपदी बहुत ही सुन्दरी थी, सती थी, शीलको अखंड पालती थी। परन्तु फिर भी वह पॉचों पांडवोंको भोगती थी । हे नाथ ! कहिए कि जव वह सती थी तो उसके पाँच पति कैसे हो सकते हैं ? और कदाचित् हों भी तो ऐसी हालतमें वह सती कहाँ रही ? यह वात परस्पर विरुद्ध है । दूसरी बात यह कि जब वह युधिष्ठिरके साथ कामासक्त होती थी उस समय और और पांडव उसके देवर हुए, जो पुत्रके वरावर होते है। फिर वह उनके साथ कैसे रमनी थी ?