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पाण्डव-पुराण । बात सुनो जो सभीके हितकी है। वह यह कि यदि तुम्हारी दोनों वधुएँ और उनकी दासी मेरे आगे हो लज्जा छोड़ कर नंगी निकल जायें तो वे अवश्य ही गर्भवती होगी या यों कि वे गर्भधारण करेंगी। इसमें कुछ भी सन्देह नहीं । तुम मेरी बात पर विश्वास रख कर ऐसा करो। गन्धिकाने वैसा ही किया और वे तीनों गर्भवती हो गई । धीरे धीरे जब गर्भके दिन पूरे हुए तव अंवा और अविकाने धृतराष्ट्र, अन्धक और कुष्टरोगी पांडुको जन्म दिया तथा वालिकाने विदुरको पैदा किया। भगवन् ! अव कहिए कि जो यह सुना जाता है कि अंवाअविकामें आसक्त-चित्त व्याससे इनकी उत्पत्ति हुई, यह कहाँ तक सत्य है ?
गांधारीका सौ अज आदि राजोंके साथ विवाह हुआ और फिर भी उसे सती कहा है, यह कहॉ तक ठीक है ? तथा सुना जाता है कि अज आदिको उनके पिता यदुवंशी राजा भोजक-दृष्टिने मार डाला तव वे मर कर भूत हुए और भूतपर्यायमें ही उन्होंने गांधारीके साथ समागम किया । यह भी एक विचित्र वात है और प्रश्न उठता है कि क्या मनुष्यनीके साथ देव भी समागम करते है ? भारी अचम्भेकी वात तो यह कि भूतोंके समागमसे उसने गर्भ भी धारण किया, पर उसका वह गर्भ अधुरे दिनोंका ही गिर पड़ा । वाद वह कपासमें रख कर बढ़ाया गया
और नौ महीने पूरे हो चुकने पर उससे दुर्योधन आदि कौरवोंकी उत्पत्ति हुई ? ___इसके बाद गांधारीका गोलक (विधवासे उत्पन्न हुए जार-पुत्र ) धृतराष्ट्रके साथ पुनर्विवाह हो गया। हे देव ! यह सब कथा आकाशके फूलकी प्रशंसाकी भॉति निष्फल-व्यर्थ है । इसके कहने या सुननेसे कुछ भी लाभकी आशा नहीं। पर न जाने लोग फिर भी ऐसी मनगढन्त कथा पर कैसे विश्वास करते है । एवं सफेद कुष्टवाले और गोलक पोडका विवाह कुन्ती और माद्रीके साथ हुआ वताया जाता है । एक दिन इन्द्रके जैसी शोभाका धारक पाण्डु राजा अपनी दोनों भार्या
ओंको साथ लेकर वनमें शिकारके लिए गया और उसने हिरण जैसे गरीब और मूक पशुओंको मारनेका इरादा किया । हे प्रभो! यह वात बड़ी खटकती है कि कौरव लोग भारी दयालु और सज्जन थे, फिर भी वे दीन-हीन पशुगोंको वध करनेका इरादा करें यह उनका काम कहॉ तक उचित है ? उसी वनमें दो तपस्वी भृगका रूप धर कर मैथुन-क्रियामें आसक्त चित्त हो रहे थे । इतनेमें वाण-विद्याविशारद पांडुने उन पर वाण छोड़ा । यहाँ यह शंका होती है कि क्या मनुष्य भी मृगका रूप बना सकते हैं ? और एक धर्मात्मा राजा मृग जैसे मूक पशुओं पर