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________________ normom anmmmmm.n दूसरा अध्याय। on - ... नेका विचार किया । उसने एक तॉवे वर्तन मॅगाया और उसमें वीर्य रख क उसके मुंह पर अपने नामकी मुहर लगा दी । तथा उसको एक श्येन पक्षीके गां वाँध कर अपनी प्रियाके पास ले जानेके लिए पक्षीको काशी भेज दिया वह लीला मात्रमें ही मार्गको तय कर गंगा नदीके तट पर जा पहुंचा । उ देख कर उस पर एक दूसरा श्येन पक्षी झपट पड़ा । दोनोंकी आपसमें खू छेड़-छाड़ हुई और परस्परकी गूंचा-नॅचमें वह वर्तन उस पक्षीके गलेसे छूट क गंगामें जा पड़ा और टूट-फूट गया। उसमें जो वीर्य था वह दैवयोगसे एक मछली उदरमें चला गया; एवं उसके उदरमें ठहर कर वह गर्भके रूपमें परिणत हो गया तात्पर्य यह कि उस वीर्यसे एक मछली गर्भवती हो गई । गर्भके नौ मही पूरे हो ही चुके थे कि दैवयोगसे उस मछली पर एक दिन किसी धीवरकी हा पड़ गई । उसने उसे पकड़ कर चीर डाला । उस वक्त उसके गर्भसे एक लड़की हुई जो कि संसारमें मत्स्यगंधाके नामसे प्रसिद्ध है । मत्स्यगंधाके शरीररं बदबू बहुत आनी थी। इस कारण उस धीवरने उसे नदीके तट पर ही वसा दिय था । वह वहीं रहती थी और नौका चला-चला कर अपनी उदर-पालना किय करती थी । धीरे धीरे वह युवती हुई । दैवयोगसे एक दिन नौकामें जाते हुए पराशर ऋपिके साथ उसका समागम हो गया। उसने व्यास जैसे सुन्दर और वेद-वेदांगके ज्ञाता पुत्रको जन्म दिया । व्यास बालकपनमें ही तप तपनेके लिए अपने ५४ राशर ऋषिके पास चले गये। एक दिन शांत-चित्त सांतनु राजाकी दृष्टि उस मत्स्यगंधाके ऊपर जा पई और वह उसके ऊपर निछावर हो गया । तथा मोहके वश होकर उसने उसवे साथ विवाह कर लिया । कुछ काल बाद शांतनु के सम्बन्धसे उसके दो पुत्र पैद हुए । एक चित्र और दूसरा विचित्र । चित्रका व्याह अंबा और विचित्रक व्याह अंबिकाके साथ हुआ। इन दोनोंकी अंबालिका नाम एक दासी थी। दैवयोगरे थोड़े ही समयमें सांतनु राजाका परलोक हो गया और चित्रविचित्र दोनों भाई राज-पाटके मालिक हुए । कालकी गति विकराल है । उस पर किसीका जोर नहीं चलता । वह दुष्ट कुछ ही कालमें चित्र विचित्रको भी निगल गया । इनके कोई सन्तान न थी, अतः राज-पाट सव सूना हो गया। तव मत्स्यगंधाने राज-काज चलानेके लिए व्यासको बुलाया ।वे आये और राज-पाटका सम्बन्ध पाकर उन्होंने भारी भारी कुकर्म किये । वे कहने लगे कि गन्धिके ! मेरी पाण्डव-पुराण ३
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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