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पाण्डव-पुराण अगम्य नहीं है, क्योंकि आपका ज्ञान तो एक बड़े भारी समुद्रके वरावर है और यह सारा संसार उसमें एक बूंद की नॉई है । हे नाथ ! आपके पास वह उत्तविद्या है जो सारे संसार पर अपना प्रकाश डालती है, उसमें यह सारा संसा हमेशा गायके खुरके वरावर झलकता है । तथा हे महर्षि ! आप बहुतसी वृद्धिं गत ऋद्धियोंके धारक हैं। बीज ऋद्धिसे युक्त और मनःपर्ययज्ञानी हैं। पादानु सारिणी ऋद्धिवाले और परमावधिज्ञानके धारक, हैं। आपमें सभी पदार्थीको जाननेवाली विद्या है जो निर्मल आकाशमें सूरजकी भाँति शोभा पाती है । सभ 'जीवोंके सभी रोगोंको दूर करनेवाली सर्वोपधिऋद्धिके आप स्वामी हैं । औ इसी लिए कहा जाता है कि आपकी परोपकारिता वचनातीत है । एवं आप चारण ऋद्धिके वलसे आकाशमें चलते हैं और मार्गके जीव-जन्तुओकी पीड़ा बचाते हैं, अत: आप परम दयालु-दया-स्तंभ-हैं। इसके सिवा अक्षीण ऋद्धि भी आपको है । बहुत कहाँ तक कहें, आकाशके तारोंकी भाँति आपकी ऋद्धियोंकी कुछ गिर्न नहीं है । कृपासिन्धु भगवन् ! मुझे एक सन्देह है, और साथ ही आशा त विश्वास है कि वह आपके प्रसादसे अब मेरे हृदयसे निकल जायगा, उसे अव में हृदयमें स्थान नहीं मिलेगा, जिस तरह जलती हुई आगसे हर एक चीजका निकल जाता है और उसमें फिर उसे स्थान नहीं पाता । क्योंकि प्रभो, न संसारमें आप ही उत्तम हैं; सबके गुरु और आश्रय हैं; महामुनि, सर्वज्ञ-पुत्र सर्वज्ञशिष्य हैं । हे सर्वज्ञ ! आपसे मैं बहुत कुछ जानना चा " और उस और लोगोंका भी हित होगा; क्योंकि वह सबके लिए उपयोगी है । हे पुरु तम! प्रसन्न हो कर मुझ पर दया करो । दयानिधे ! मैं कुरुवंशके दीपय पाण्डवोंका चरित सुना चाहता हूँ । सुना जाता है कि पांडव लोग कौरव थे और बहुतसे राजा महाराजा उनके सेवक थे। इसमें मुझे यह सन्देह है कि वे कौनसे वंश पैदा हुए ? कुरुवंश किस युगमें हुआ या चला ? इसके सिवा गुण और गौरववे धारक कुरुवंशमें पृथ्वी पर कौन कौनसे प्रसिद्ध पुरुषोंने जन्म पाया ? और उस वंशमें धर्म-तीर्थके प्रवर्तक और जगत्-पूज्य कौन कौन तीर्थकर . . चक्रवर उत्पन्न हुए ? नाथ ! अन्यमतके शास्त्रोमें जो पांडवोंका चरित पाया जाता है व. तो सर्वथा वॉझ स्त्रीके पुत्रकी सुन्दरताका वर्णन है; मिथ्या है । उसमें कुछ में सार नहीं है । सुनिए।
काशीका शांतनु राजा कहीं युद्धके लिए गया था। वहाँ उसे अपनी प्रिया ऋतु समयकी याद हो आई। और उसने उसे नति-दान देने के लिए अपना वीर्य भेज
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