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________________ ' · treat अध्याय | wwwwwwm m^^^ ^^ कर चले | उनके साथ झूलोंसे प्रच्छन्न मतवाले हाथी चले । सारथियोंके द्वारा तेजी से चलाये गये शीघ्रगामी घोड़ोंवाले रथ चले । चलते हिलते हुए किसवार - वाले चंचल घोड़े चले | हाथोंमें भाँति भाँतिके हथियार लिये हुए पयाद चले | इस प्रकार चतुरंग सेना सहित घोड़ोंकी टापोंसे उड़ती हुई धूलसे आकाशको ढकता हुआ दुर्योधन राज-मन्दिर पुरकी ओर चला और जैसे गंगाका प्रवाह समुद्र में जाकर मिलता है वैसे ही वह कौरवाग्रणी वाहिनी - सेना - सहित चक्रवर्ती जगसंघकी सेनामें आकर मिल गया । जरासघने उसका कर्ण-सहित वडा आदर किया जैसा कि लोग सूरज के साथ किरणोंको आदर करते हैं । wwwma ३०७ इसके बाद चकवर्तीने यादवोंके पास द्वारिकाको दूत भेजा । दूतने जाकर वहाँ यादवों को यह सूचना दी कि आप सब यादवों पर चक्रवर्ती जरासंध यह आज्ञा करते है कि अपने देशको छोड़ कर आप लोग इस समुद्रमें क्यों रहते हैं ? बुद्धिमान् समुद्रविजय और वसुदेव मुझे बहुत ही प्रिय हैं । फिर ये अपने आपको ठग कर यहाँ क्यों आ छिपे । इनके लिए ऐसी छिपनेकी बात ही क्या थी । अस्तु, अब भी कुछ गया नहीं है । वे अपने गर्वको छोड़ कर सब सुख देनेवाले मेरे चरणों की सेवा करें । दूतके मुँहसे जरासंघकी इस आज्ञाको सुन कर बलशाली वलभद्रने अभिमान के साथमें यों कहना आरम्भ किया कि दूत, जाओ और अपने महाराज से कह दो कि कृष्णको छोड़ करके और दूसरा चक्रवर्ती नहीं जिसके चरणोंकी सागर (समुद्रविजय ) सेवा करे । बलभद्रके इन वचनोंको सुन कर ओठ डसता हुआ दूत बोला कि मुझे यह तो बताइए कि जिसके भय से आप यहाँ समुद्रके वीचमें आ छिपे है उसके चरणोंकी सेवामें दोष ही क्या है । अस्तु, आपकी जैसी इच्छा । परन्तु आपके इस गर्वको कृष्ण नहीं सह सकता और वह क्रोध से तप्त होकर अभी यहीं आता है । उसके साथ में ग्यारह अक्षौहिणी सेना है । वह आपके गर्वको खर्व करेगा, आपको पदच्युत करेगा । दूतके ऐसे कठोर वचनों को सुन कर भीमको बड़ा क्रोध आया । वह प्रगट होकर बोला कि स्वतंत्रता से बकनेवाले इस दूतको यहाँसे अभी निकाल दो | यह सुन कर दूत क्रोधके मारे उसी समय वहाँसे चल दिया और जरासंधंके पास जाकर उसने उससे यादवोंकी गुजरी हुई सारी कहानी कह सुनाई । वह बोला कि देव, वे लोग मदिराके नशेकी भाँति मतवाले हो रहे हैं और " के
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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