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पाण्डव-पुराण |
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सुंदरी कन्याको उसे दीजिए । अर्जुनको इस कहनेको स्वीकार कर विराटने विवाह-मंगलोंके द्वारा बड़े भारी ठाट-बाटके साथ अभिमन्युके साथ अपनी कन्याका विवाह कर दिया ।
इसके बाद पांडवों का यह सब हाल जब द्वारिकामें पहुँचा तव वहाँसे बलभद्र, नारायण, प्रद्युम्न, भानु आदि विराट नगरमें आये । तेजस्वी धृष्टार्जुन और अखंड सत्ताशाली महाभाग शिखंडी भी आया । इसी भाँति रूप-सौन्दर्य से सुशोभित, आनंद के भरे, सैकड़ों मनोरथोंको चित्तमें रख कर और और राजा भी आये । विवाहके बाद भी पांडव और राजा लोग कितने ही दिन वहाँ और रहे। इसके बाद वस्त्राभूषण आदिके द्वारा सम्मानित हो वे अपनी अपनी राजधानीको चले गये । सबको विदा कर नारायण और बलभद्र आदि राजा लोग तीन अक्षौहिनी सेना लेकर प्रीतिके साथ, पांडवों सहित वहाँसे रवाना हो द्वारिकामें आ गये और वहाँ वे परस्पर बड़ी प्रीतिसे रहते हुए अपना समय बिताने लगे ।
इसी समय श्रेणिकने गौतम भगवानसे पूछा कि भगवन, अक्षौहिणीका प्रमाण कितना होता है ? गौतमने उत्तर दिया कि २१७८० हाथी, इतने ही रथ, ६५६१० घोड़े, १०९३५० प्यादे योद्धा इन सबको मिला एक अक्षौहिणी होती है।
द्वारिकापुरी में रहते हुए अर्जुनने एक दिन नीतिसे बृहस्पतिको भी जीतनेवाले कृष्णसे कहा कि कौरवोंने छलसे हमें लाखके महल में रक्खा और बाद उन शठोंने उसमें आग लगा दी । पुण्यसे हम लोग उस समय बाल बाल बच गये । इसके सिवा उन. दुष्टोंने एक बड़ा भारी अपराध यह किया है कि द्रोपदीकी चोटी पकड़ कर उसे बलात् घर बाहर किया और उसका घोर अपमान किया । अर्जुनके वचनों को सुन कर महामना नारायण दाँतों तले जीभ दवा कर बोले पार्थ, दुर्योधनने यह सचमुच ही बड़ा अन्याय और बहुत ही क्षुद्रता की है यह दुष्ट न तो बन्धुवर्गको चाहता है और न इसमें कुछ कुलीनता ही है । इसी कारण संसार में इसका इतना अपयश फैल रहा है, जिसकी कोई सीमा नहीं । कौरवोंके दुराचारोंको पृथ्वी पर ऐसा कोई नहीं जो सह सके । पांडवोंके साथ इस विषय पर खूब विचार कर नारायणने अपना कर्तव्य निश्चित किया और फिर दुर्योधनके पास एक दूत भेजा । दूत थोड़े ही समय में हस्तिनापुर
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