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________________ पाण्डव-पुराण। WM रोक टोक मेरे ऊपर प्रहार करो । इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है । द्रोणाचार्यके इन वचनोंसे डर कर पार्थने उनसे कहा कि गुरुवर्य, तब पहले आप ही पाण छोड़ें, पीछेसे यथाशक्ति मैं भी आपकी सेवा करूँगा और आपके पलको-देखूगा । इसके बाद अभिमानमें भूल कर वे दोनों गुरु-शिष्य आपसमें युद्ध करनेको उद्यत हुए । इस समयके इन दोनों के भीषण युद्धको आकाशमेसे - देवगण और नीचेसे दोनों पक्षकी सेनाके लोग देखते थे और देख कर बड़े अचम्भेमें पड़ रहे थे । इसके बाद द्रोणने एक साथ वीस बाणोंको छोड़ कर सारे आकाशको ढंक दिया । उधरसे उद्धत पार्थने उन आते हुए वाणोंको आधे मार्ग में ही छेद डाला । तव क्रोधमें आ द्रोणने अर्जुनके ऊपर एकदम लाख-बाण छोड़े जिनको कि उसने, दो लाख वाणोंसे निवार दिया । यह देख जय-लक्ष्मी अर्जुन जैसे शुभंकर भव्य मूर्ति पर निछावर हो गई । इस प्रकार अर्जुनने अपने प्रखर वाणोंकी मारसे द्रोणाचार्यको युद्ध स्थलसे हटा दिया। इसी बीचमें युद्धकी प्रतिज्ञा करता हुआ उधरसे द्रोणका पुत्र अश्वत्थामा युद्धस्थलमें आ उतरा । फिर क्या था, अर्जुन और वह दोनों महायोद्धा परस्पर भीषण सिंहके बच्चोंकी भाँति भीषण युद्ध करने लगे । इतनेहीमें बीभत्सने अश्वत्थामाके रथके दोनों घोड़ोंके छेद दिया, जिससे वे प्राणरहित हो कर पृथ्वी पर गिर पड़े। इधर अश्वत्थामाने भी अपने महावाणोंके द्वारा अर्जुनके गांडीव-धनुषकी डोरीको छेद दिया। परन्तु अर्जुनने धनुष पर उसी वक्त दूसरी डोरी चढ़ा कर अश्वत्थामाके हृदयमें कई ऐसे वाण मारे कि जिनसे वह अति शीघ्र बे-होश हो कर जमीन पर गिर पड़ा। इसके बाद उत्तर सारथीने अर्जुनसे कहा कि नाथ, अब मैं दुर्योधनकी ओरको रथ फेरता हूँ, अतः हे धनुधर, आप धनुष पर शर संधान कर अति शीघ्र ही इन शत्रुओंका कम तमाम कर दीजिए। इस पर अर्जुनने दुर्जेय शत्रुओंको अपनी ओर आकर्षित कर मर्मको नर्म करनेवाले वचनों द्वारा समझाया और साथ ही उस शौंडीरने अपने विषम-बाणोंके द्वारा आकाशको पूर दिया । यह देख राजबिन्दु पार्थ पर झपटा और उसने अपनी सेनाके द्वारा उसे चारों ओरसे घेर लिया । उस समय ऐसा जान पड़ता था मानों हाथियोंने सिंहको घेर लिया है । अर्जुन सिंह जैसा था और राजबिन्दुके सैनिक-गण हाथियों जैसे । लेकिन वह सेना अर्जुनका कुछ भी न कर सकी और है भी ऐसा ही कि क्या कहीं हाथी बहुतसे मिल कर भी एक सिंहका कुछ कर सकते है । राजविन्दुकी सारी सेनाको अकेले अर्जुनने ही
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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