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________________ २९ट - पाण्डव पुराण । irrrrrrrrrrmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm अत्यन्त तेजीके साथ एकदम पॉच वाण चलाये जो पार्थकी छातीसे टकरा कर वे-काम हो गिर पड़े। यह देख पार्थने उस पर दस वाण चलाये, जिनसे उसके माण पखेरू उड़ गये और वह धराशायी हो गया । शत्रुजयको मरा देख अर्जुनके : वाणोंको काटता हुआ भयानक युद्ध करनेवाला कर्णका छोटा भाई विकर्ण अर्जुन पर दौड़ पड़ा । फल यह हुआ कि अर्जुनने सारथीको मार कर उसका भी रथ नष्ट कर डाला । और जब वह असमर्थ हो गया तव अर्जुनने उसे भी वाणोंसे पूर दिया। . इसी बीचमे धनुष चढ़ाये हुए यमके जैसा एक वीभत्स नाम योद्धा कौरवोंकी सेनाको तितर वितर करता हुआ युद्ध-स्थलमें उत्तरा और उसने देखते देखते अपने एक ही वाणके द्वारा विकर्णका मस्तक धड़से जुदा कर दिया। तब एकदम विकर्णका चिल्लाना बन्द हुआ और वह यम-मन्दिरको प्रयाण कर गया । विकर्णको धराशायी होता देख कर कौरवोंकी सारी सेना उसी वक्त पार्थ पर टूट पड़ी। परन्तु वह पार्थका वाल भी वॉका न कर सकी । पार्यने उसे उसी दम आगे बढ़नेसे रोक दिया । यह देख उधरसे कर्णने सेनाको भागनेसे रोका और उसे नष्ट करनेको उद्यत हुए पार्थको ललकारा । फिर क्या था, अर्जुन भी कर्ण पर वाणोंकी वरसा करने लगा और कर्ण उसके वाणोंको व्यर्थ करनेकी चेष्टा करने लगा । अन्तमें कर्णने एक साथ चलाये हुए तीन बाणों के द्वारा धनंजयको, उसके सारथीको, रथको और उसकी धुजाको वेध दिया। यह देख धनंजयको बड़ा क्रोध आया और उसने थोड़ी ही देरमें अपने वाणोंकी मारसे कर्णको धराशायी कर दिया, जिससे उसे मूी आ गई। वह वे होश हो गया। उसी वक्त कौरवोंने कर्णको रथमें बैठा कर युद्धस्थलसे बाहिर किया और वे उसका उपचार करने लगे। इधर क्रोधसे अन्धा हुआ दुःसाध्य दुःशासन युद्ध-स्थलमें कूद पड़ा और उसने यह कह कर अर्जुनके हृदय में एक बाण मारा कि यदि ताकत हो तो तू मेरे चाणोंको सह देख । उसके वाणके लगते ही धनंजयको भी बड़ा क्रोध आया और उसने उसके ऊपर एकदम पञ्चीस बाण चलाये, जिनसे उसे एक क्षणमें ही अधमरा सा हो जाना पड़ा । इसके बाद और और राजा भी जो पार्थके आगे आये, उन्हें भी उसने मार गिराया और दिगीशोंको उनकी बलि चढ़ा दी । अन्तमें इस प्रकार सब शत्रुओं पर विजय पाकर अर्जुन बड़ा कृतार्थ हुआ और उस शत्रु-समूहके विध्वंसकके सारे मनारय सिद्ध हुए।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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