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________________ NAAMR उन्नीसवाँ अध्याय। ૨૭ ___ इसी बीचमें पार्थके सामने कौरवोंकी सेना आ डटी और उसने अपने संख्यातीत वाणोंके द्वारा विराट-पुत्रको जर्जरित कर दिया । यह देख धनंजय आगकी नॉई जल उठा और उसने एक ऐसा बाण छोड़ा जिसकी ज्वालासे कौरवोंकी सारी सेना दावानलसे जलनेवाले वनकी भाँति जलने लगी। इसके बाद ही धनंजयने गांडीव धनुष उठा कर कौरवोंकी सेनाको ललकार कर कहा कि यदि तुममें कोई भट कुछ भी सामर्थ्य रखता हो तो वह आये और मेरे आगेसे दुर्योधनको जीता वचा ले जाये । पार्थ के इन वचनोंसे कर्ण क्रोधसे आगकी नॉई जल उठा और युद्धके लिए तैयार होकर अर्जुन पर टूट पड़ा । फिर क्या था, वे दोनों ही वीर आपसमें भिड़ गये और अपने पॉवोंके महारसे पृथ्वीको कम्पित करते हुए तथा हँसी भरे वाक्योंके द्वारा एक दूसरेकी हँसी उड़ाते हुए एक दूसरेको अपने अपने महान् तीक्ष्ण वाणों द्वारा अच्छादित करने लगे। वे परस्परमें कभी तो महान् प्रखर वाणोंकी वरसासे एक दूसरेके छोड़े हुए शरोंको छेदते और कभी विनों के समूह जैसे खगोंके द्वारा एक दूसरेका हनन करते । वे लड़ते हुए जो शब्द करते थे उससे ऐसा जान पड़ता था मानों घोड़े ही हींसते हैं । वे अपनी मारकाटसे पृथ्वीको चकचूर करते हुए हाथीके जैसे जाने जाते थे। वे सिंहकी भॉति ही जीवोंको मार रहे थे । अव और बढ़ा कर कहनेकी आवश्यकता नहीं । उन्होंने अपने संख्यातीत वाणोंके द्वारा सारेके सारे गगन-मंडलको ही पूर दिया था। इसके बाद भी पार्थने वाणोंकी बरसा जारी रक्खी और मेघोंकी नॉई बाणोंसे आकाशको विल्कुल ही हॅक दिया । अर्जुनकी वीरता देख शत्रु-दल युद्ध-स्थलको छोड़ कर ऐसा भागा जैसे वायुके मारे मेघ भागते हैं । इसके बाद धनुषधारी अर्जुनने अपने शर-कौशलसे कर्णके धनुपकी डोरीको काट डाला और वातकी वातमें ही उसके रथको भी सारथी-सहित नष्ट कर दिया । कर्ण तब रथ रहित हो गया । इसके बाद शत्रुओंको जीतनेकी इच्छासे दुर्योधनका छोटा भाई शत्रुजय, शत्रु-दलको वाण-प्रहारसे प्रच्छन्न करता हुआ सिंहके जैसा गर्न कर/पाय पर झपटा । उसको युद्ध-स्थलमें उतरा देख करके उससे अर्जुनने कहा कि बालक, जाओ, रणसे वापिस लौट जाओ। तुम व्यर्थ ही अपने माण क्यों गवाते हो? क्या कहीं बेचारा हिरण भी सिंहके पाँवके आघातको सह सकता है। या महान सर्प भी गरुड़के पक्षके महारको सह सकता हैं ! तुम अभी बालक हो, शक्ति-विहीन हो, असमर्थ हो, इस लिए तुम पर बाण छोड़नेको मै तैयार नहीं । अर्जुनकी इस गर्वोक्तिसे उसे बड़ा क्रोध आया । उसने अर्जुनके ऊपर पाण्डव पुराण ३०
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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