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________________ २९६ अभी तक क्षत्रियोंके स्वाभाविक मार्गसे परिचित नहीं हो। यदि यही बात हो तो सुनो, मेरे क्रोधके सामने पार्थ क्या वस्तु है और तुम सरीखे निर्बल मनवाले कायर, भला कर ही क्या सकते हैं । 1 उधर रथ पर सवार हुए कर्णने भीष्म पितामहसे कहा कि गुरुराज, क्या तुमने मुझ सरीखे बलीको भी रणमें किसीके द्वारा जीता गया देखा है । अव जरा मेरे पराक्रमको भी देखो कि मैं देखते देखते महाभागं अर्जुनको उत्तर- सहित कैसा छिन्न भिन्न किये देता हूँ, जिसमें कि पृथ्वी पर उसका नाम निशान भी न रहे। कर्णके इन वचनोंको सुन कर पितामहको बड़ा रोप आया और उन्हें बड़ा क्लेश हुआ । वे वाले कि कर्ण, पहले तुम यही बताओ कि पृथ्वी पर तुमने ऐसा भयंकर युद्ध कहीं देखा भी है ? सच करके मानों कि युद्धमें अर्जुनका बाल भी बॉका कर सकनेवाला संसारमें कोई पुरुष नहीं है । यदि वह रोषमें आ जायगा तोः सन्देह नहीं कि तुम सबको एक क्षण ही पृथ्वी पर सुला देगा । इसी बीचमें कूद करके शल्य वोल उठा कि तात, सच तो यह है कि यह जो हम सरीखे लज्जाशील पुरुषों में परस्पर युद्ध छिड़ा है, यह सब आपकी करामात है; और कोई भी इसमें कारण नहीं है । द्रोणाचार्यने देखा कि, दुर्योधनने उनकी बात नहीं मानी। तब वे तथा भीष्म पितामह उसकी सुशिक्षित हाथी, घोड़े, रथोंवाली सेना सहित उमड़ करके पार्थसे भिड़नेके लिए आगेको बढ़े। उधर से पार्थने अति शीघ्र ही गांगेयके पास दो बाण ऐसे छोड़े कि जिन पर उसका नाम लिखा हुआ था: । वाण जाकर गरियका पास पड़े । गांगेयने देख कर उन्हें बाँचा | उनमें लिखा था कि, "धनंजय, पितामहसे प्रार्थना करता है कि मैं नत होकर आपके चरण-कमलोंमें मस्तक झुकता हूँ। मैं हमेशा ही। आपकी सेवाके लिए तैयार रहता हूँ । हर्ष है कि आज तेरह वर्ष पूरे हो गये और भाग्यसे हमें फिर आपके चरणोंकी, सेवाका अवसर मिला । अब आगे मै शत्रु-समूहका विनाश कर अपनी वीरता से पृथ्वीको भोगूँगा ।" पितामहने, उस बाणको कौरवोंको दिखाया | देख कर वे क्षोभित हो उठे और उन्हें बड़ा भय हुआः । + * " । इसके बाद लक्ष्यवेधीपार्थने शत्रु दलको अपना लक्ष्य- बानाया और उसीके अनुसार शत्रुकी ओर उसने अपना स्थ भी चलाया। बाद वह दुर्योधनसे बोला कि अधम- दुर्योधन, तू अब मेरे मारे कहाँ जायगा 2. मैं तुझे, अत्र : यमालयका " अतिथि बिना बनाये- कभी न छोडूंगा। इसके साथ ही सहसा पार्थके स्थको अपनी ओरको आता देख कर सूर्ख और दुष्टचित्त दुर्योधन काँप उठा और बड़ा भयभीत हुआ । ܝܕ wwwm पाण्डव-पुराण | " www www mer #
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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