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उन्नीसवाँ अध्याय ।
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कर इस महारणमें पकड़े गये विराट नरेशको बन्धन से मुक्त करो और जालधरसे अखिल गोकुलको छीन लाकर तुम मुझे अपना वल दिखाओ। तुम्हारे चलकी परीक्षाका यही समय है । हे महारथी, तुम जाकर संकटमें फँसे हुए और दृढ़ बन्धनों से बँधे हुए विराट नरेशको वन्धन मुक्त कर आपत्ति से छुड़ा कर मेरे मनोरथको पूरा करो। अपने भाई के ऐसे वाक्योंको सुन कर विपुलोदर उसी वक्त तैयार हो गया और युधिष्ठिरको प्रणाम कर एक वृक्षको जड़से उखाड़ वह उस महायुद्धमें घुस पड़ा । घोर शब्द करते हुए उसने इधर उधर खूब दौड़ लगाई। उस समय वह अपने घोर शब्दसे यपके जैसा और उखाड़े हुए वृक्षसे मतवाले हाथीके जैसा जान पड़ता था । एवं युधिष्ठिरकी प्रेरणासे गांडीव धनुर्धारी पार्थ, विपुलाशय नकुल और सहदेव भी मर्यादा रहित समुद्रकी नॉई उमड़ कर युद्धके लिए उद्यत हुए ।
इस समय भीमाकृति भीमने ग्यारहसौ रथोंको चूर डाला, पार्थने अपने शर-कौशलसे साढ़े नौसौ घोड़ोंको बेकाम कर दिया, नकुलने अपने आरम्भ किये घन-घातके द्वारा वैरियोंके कई कुलोंको नष्ट कर दिया और सहदेवने भी दुर्जय शत्रुओं के साथ बड़ी भारी शूरतासे युद्ध किया। जिससे कि जालंधर के सैन्य-समुद्रमें बड़ा भारी क्षोभ मच गया । कहीं भी शान्तिको जगह न रह गई । यह देख जालंधर जल कर आग हो गया और धनुष-बाण लेकर भीमके ऊपर टूट पड़ा । एवं उस धीरज धारीने भीमको वाणकी अविरल बरसासे एकदम बॅंक दिया जैसे मेघ आकाशको ढँक देते हैं। उधरसे भीमने भी अपने बाणोंकी वरसा' शुरू की और वातकी वातमें ही उसने जालंधर के सारथीको मार गिराया । वाद रण- रंगका ज्ञाता भीम उछल कर उसके रथ पर जा झपटा और साहसके साथ उसने जालंधर महीपतिको बाँध कर विराटको बंधन मुक्त कर दिया । यह देख शरोंकी मारसे जर्जरित हुई जालंधर की सारी सेना अपने प्राण लेकर भाग गई । इस प्रकार विराट तथा गोधनको स्वतंत्र कर भीमने आकर युधिष्ठि रके चरणोंमें प्रणाम किया । युधिष्ठिरने भी भीमकी पीठ थपथपा कर बड़ा सन्तोष प्रगट किया ।
उधर जालंधरके पकड़े जानेका समाचार ज्यों ही दुर्योधन के कानों तक पहुॅचा त्यों ही क्रोधमें आ, युद्धके लिए उद्यत हो वह सेना सहित विराट देशको चल पड़ा । और विराट नगरके पास आकर उस महायोद्धाने उत्तर