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पाण्डव-पुराण- 1
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नरेश्वरको बड़ा क्रोध आया। उसने उसी समय युद्धकी उद्धतताको फैलानेवाली रणभेरी बजवा दी - युद्धकी घोषणा कर दी । जिसको सुन कर योद्धा कवच आदि अस्त्र-शस्त्रसे सज कर उठ खड़े हुए और उन्होंने धनुषोंकी ध्वनियोंके द्वारा आकाशको वहिरा कर दिया। इस वक्त युद्ध-स्थल के लिए सोनेके पलानोंसे विभूषित, युद्ध-समुद्रकी तरंगों की नाई, चंचल और खूब सजे हुए घोड़े चले । उन सब पर सवार सुशोभित थे । 'सुन्दर चालवाले हाथी गर्जते हुए निकले और गलियों के मार्गको रोक कर चलनेको तैयार खड़े हुए रमणीय रथं सुशोभित हुए । इस प्रकार चतुरंग सेना सहित पुरकी रक्षाका उचित प्रबन्ध करके रथमें सवार हो विराट नरेश नगरसे बाहिर निकला ।
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उसके पीछे पर्वतके जैसे उन्नत गुप्त वेषधारी पांडव रथ में सवार हो चले । उधर धनुषोंके शब्द से मिला हुआ रण-भेरियोंका शब्द हुआ | विराटऔर जालंधर के इस वक्त भीषण युद्धको देख कर भीरुओं के प्राण संकटमें पड़ गये और महाभटोंके रोमांच हो आये । दोनों ओरके रण-शौंडीर योद्धा धनुषको कर्ण पर्यन्त खींच कर अविरल बाणोंकी वरसासे शत्रुओंके हृदयों को बड़ी निर्दयतासे वेधते थे । वज्र प्रहारसे खंडित होनेवाले पर्वत की नॉई तलवारोंके महारसे खंडित होकर योद्धागण पृथ्वी पर पड़ते थे । सारांश यह है कि उन दोनों में रात रात तक बड़ा भीषण युद्ध हुआ । इस समयके उनके युद्धको देख कर ऐसा कोई भी जीवधारी नहीं रहा, जिसे कि भय न मालूम पड़ा हो । अन्तमें अपने धनुपके द्वारा वाणों पर वाण छोड़ता हुआ और योद्धाओंकी धर-पकड़ करता हुआ जालंधर राजा विराटकी ओर दौड़ा। वह योद्धाओं के हाथ-पाँवको काटता हुआ ऐसा जान पड़ता था मानों वृक्षोंको डालियोंसे रहित ही करता जा रहा है। आखिर विराट तक पहुँच कर उसने उसे ऐसा ललकारा कि उसके होश-हवाश बिगड़, गये । वाद क्षणभर में ही अपने तीक्ष्ण बाणोंके द्वारा विराटको सारथी सहित वेध दिया और कूद कर वह उसके रथमें पहुँच गया। इसके बाद उसने संकटमें पड़े हुए वीर विराटको बाँध कर विवश कर दिया और अपने रथमें बैठा कर वह वहाँसे चलता बना, जैसे कि भयंकर साँपको लेकर गरुड़ - आकाशमें चला जाता है ।
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उधर यह बात जब युधिष्ठिरने सुनी कि दुष्ट जालंधरने विरोटको पकड़ लिया है तब उसने शूरवीरताके स्थान भीमसे कहा कि भीम, रथको जल्दी लेजा
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