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________________ उन्नीसवाँ अध्याय। २९१ MAMA womanmammmmmmmm AVNAMVAAAAAAAA उन्नीसवाँ अध्याय। उन विमल प्रक्षुकी मै स्तुति करता हूँ जिनकी ध्वनि निर्मल है, जो मल रहित विमल हैं, जिनके शरीरकी प्रभा विमल है और पवित्र पुरुष भी जिनके चरण-कमलोंकी पूजा-भक्ति करते हैं। वे जिन मेरे कर्म-कलंकको हरें और मुझे निर्मल करें। इसके बाद भीष्म पितामहने प्रपंचके साथ द्रोणाचार्यसे कहा कि आजसे चौथे-पाँचवें दिन पांडव अवश्य ही आ जायँगे और भरोसा है कि वे महाभट प्रगट होकर दुर्घट कामोंको कर दिखावेंगे । इस समय निष्ठुर और अविचारी जालंधर राजा बोला कि मैं शीघ्र ही विराट देशको प्रयाण करता हूँ । सुना जाता है कि सारे संसार में प्रसिद्ध महाभट, परचक्रको भयभीत करनेवाला, रणमें दुर्जय और कौरवोंका पक्षपाती कीचक किसी गंधर्वके द्वारा मारा गया है । और इसी कारण इस समय विराट देशका राजा भी निःसहाय हो रहा है । उसके यहाँ । संसार भरमें विख्यात भारी गो-समूह है, अतः इस अवसर पर मैं वहाँ जाकर उसका गो-धन हरूँगा । कारण कि फिर कभी ऐसा अवसर मिलना दुःसाध्य है। एवं गायोंको हर कर लाते वक्त जो रण-शूर विकट भट मेरा पीछा करेंगे उनको मार कर मैं अखिल गो-समूहको यहॉ ले आऊँगा । सन्देह नहीं कि उस वक्त वहाँ युद्धकी अभिलाषासे प्रगट होकर पांडव भी युद्ध-भूमिमें उतरें। अतः - उन गुप्त-वेष-धारी महा द्रोहियोंको भी मैं यमालयका अतिथि बना सकूँगा । जालंघरके इन वचनोंसे दुर्योधनका हृदय फूल गया और उसने उसकी बडी प्रशंसा की। परिणाम यह निकला कि उसने प्रसन्नताके साथ जालंधरको विराटके गोकुलको हरनेके लिए भेज दिया । वह अपने साथमें चंचल, ऊँचे और हिनहिनाते हुए घोड़े, सजे हुए हाथी और फहराती हुई धुजाओंवाले रथ आदिकी बहुतसी सेना लेकर रवाना हुआ। वह क्रोबसे उद्धत हुआ वहॉ पहुंचा और पहुँच कर उसने ग्वालोंसे सुरक्षित विराटके सारे गोकुलको हर लिया । तब भय-भीत होकर रोते चिल्लाते हुए ग्वालोंने भाग कर विराट नरेशके सामने पुकार की। वे कहने लगे कि देव, दुःख है कि जालंधर राजाने सारा गोकुल हर लिया है और जलसे युक्त समुद्रकी नॉई चतुरंग सेनासे युक्त हो वह उसको ले करके अपने देशको जा रहा है। ग्वालोंकी इस दुःख भरी पुकारको सुनते ही विराट
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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