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अठारहवाँ अध्याय ।
उनका पीछा न छोड़ा-वह उनके पीछे भागा ही गया; जैसे कोई मतवाला छायी लोगोंके पीछे पड़ जाता है और फिर उनका पीछा नहीं छोड़ता । इस वक्त उन भटौंका यह हाल था कि वे वेचारे भम हुए न तो पाछेको मुंड कर देखते थे और न कहीं ठहरते ही थे । और है भी यही बात कि मृत्युसे डरा हुआ कोई भी ऐसा नहीं जो फिर स्थिर रह सके।
इसके बाद बलसे उद्धत हुए फीचकके सौ भाइयोंने जब कहीं भी फीचकको न पाया तब उन्होंने सबसे पूछताछ की और किसी तरह द्रोपदीके द्वारा उसे मरा हुआ जान कर द्रोपदीको ही जला कर खाक कर देना चाहा; और इसके लिए उन्होंने चिता भी रच डाली । यह सब बातें महावली भीमके फानोंमें पहुंची । उसका परिणाम यह हुआ कि उसने उसी वक्त जाकर उन सौके सौ ही भाइयोंको उस चिता पर बलात् डाल कर जला डाला; जैसे कि कोई एक फॉटेको उठग कर आग पर फेंक जला देता है । इस प्रकार द्रोपदीकी रक्षा कर भीपने स्नान वगैरहसे उसे पवित्र किया।
सवेरा हुआ। पांचालीको नगरमें प्रवेश करते हुए सभी नागरिकोंने देखा । वह किसीको प्रलयश्री सी और किंसीको आनंद देनेवाली लक्ष्मी सी देख पड़ी। उधर कीचकके सप भट अपने माथेमें कलंकका टीका लगा कर लजित हो अपने स्थानको चले गये । इसके बाद भीमने युधिष्ठिरके पास जा फर उनसे द्रोपदीके साथ गई रातमें किये हुए कीचकके सारे वृत्तको कह सुनाया, जिसको सुन कर युधिष्ठिरने कहा कि हम लोगोंको यहाँ तेरह दिन और चुपचाप रहना चाहिए और कोई बखेड़ा खड़ा न करना चाहिए। इस प्रकार अपने बड़े भाईके मना करने पर वे धर्ममना सब भाई पिल्कुल मौन हो रहे ।
इसी वीचमें दुर्योधनने अपयश पाये हुए अपने सेवकोंको पांडवोंकी खोजमें भेजा । उन्होंने पहाड़, पृथ्वी, वन, जल, दुर्ग आदि सभी स्थान देख डाले, पर उन्हें कहीं भी पांडवोका पता न लगा । आखिर वे सब जगह देख
भाल कर वापिस आ गये और दुर्योधनको नमस्कार कर उससे बोले कि 1 महाराज, हमने न तो कहीं पांडवोंको देखा, न किसीके मुखसे कहीं जीता सुना
और न कहीं उन्हें हमने मरे हुए पड़े पाया। इस प्रकार दुर्योधनको सन्तुष्ट कर और धन-मान पाकर वे अपने अपने घर चले गये।
यह देख भीष्म पितामहने कौरवोंसे कहा कि राजन्, मेरी एक वात सुनिए । वह यह है कि प्रचंड पांडव विना मौत तो मारे नहीं जा सकते, चाहे
पाण्डव-पुराण ३.