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________________ 'पाण्डव-पुराण । एक ऐसी लात और लगाई कि जिससे उसकी साँस रुक गई और फिर उसे एक शब्द बोलना भी कठिन हो गया । उसका कंठ रुक गया । उसकी छाती पर पाँव देकर भीमने उससे कहा कि दुष्ट, अनिष्टकारी, संक्लिष्ट-चित्त, परस्त्रीरत नीच, देख यह सब परस्त्री-लंपटताका ही दोष है । . इसके बाद भीमने उसे बड़ी निष्ठुरतासे पीस कर कहा कि तू अब कहाँ जायगा । मैं तुझे कभी जीता न छोडूंगा । इतने पर भी भीमको सन्तोष न हुआ सो उसने उस दुष्टकी छातीमें एक ऐसी जोरकी लात जमाई कि जिससे उसका एक क्षणभरमें ही काम तमाम हो गया, वह मर गया। - इसके बाद द्रोपदीने राज-मंदिरमें जाकर समाचार दिया कि आज गंधर्वोने कीचकको मार डाला है । जिसे सुन कर विराट वड़ा भयभीत हुआ। यह समाचार ज्यों ही कीचकके सेवकोंके कानों पड़ा त्यों ही वे दौड़े हुए उस नृत्यशालामें आये । उस समय वह हजारों जनोंसे व्याप्त हो रही थी। उन्होंने वहाँ आकर कीचकको मरा हुआ पाया । वह वहाँ मृत्युकी गोदमें अचेत पड़ा था । जान पड़ता था मानों उसे देवने ही मार डाला है । उन्हें जब यह र जान पड़ा कि इसे गंधर्वने मारा है तब वे महाभट बड़े लज्जित हुए और उन्होंने परस्पर सलाह कर यह निश्चय किया कि चुपचाप इसी समय गंधर्व सहित इसे दग्ध कर देना चाहिए। सवेरा होने पर यदि यह समाचार लोगोंमें फैल गया तो बड़ी भारी हॅसी होगी। इसके बाद वे वहाँ पहुँचे जहॉ कि सौभाग्यवती पांचाली थी। उन्होंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ कर उसे बाहर निकाला । द्रोपदी भयसे चिल्लाती, ऑसू बहाती तथा गंधर्वको पुकारती हुई निकली। द्रोपदीका यह हाहाकार शब्द जो कि करुणाजनक था, भीमके कानोंमे जाकर पड़ा । उसे सुनते ही । भीमको इतना क्रोध आया कि वह उसी वक्त कोटकी दीवाल लॉघ कर, बाल बखेरे हुए, एक वृक्षको उखाड़ हाथमें लेकर वायुके वेगकी भाँति अति शीघ्र दौड़ा । उसे देख कर लोगोंको ऐसा भ्रम होता था कि क्या यह राक्षस है जो कि देखते देखते ही सव नष्ट किये देता है, या , सवको एकदम ग्रस लेनेके लिए जबरदस्त काल ही आ पहुँचा है । इस समय ज्यों ही इसे कीचकके भटोंने इस हालतमें देखा त्यों ही वे सब उस मुर्देको वहीं छोड़ कर भयसे चकित हुए अपने प्राणों को ले कर-जिसे जिधर जगह मिली-भागे । परन्तु किलकारियाँ मारते हुए यमके जैसे भीमने तब भी
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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