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________________ अठारहवाँ अध्याय । २८७ जाऊँगी । द्रोपदीके इन वचनोंको सुन कर अतीव प्रसन्न कीचकने कहा कि मानिनी, तुम शामके समय नाट्यशालामें आना । वहाँ मैं तुम्हारी सब इच्छाकी पूर्ति कर , सर्केगा। इसके बाद द्रोपदी भीमके पास आई और उसने भीमसे उस दुष्टकी कही हुई सारी बातें कह दी । द्रोपदीकी बातोंको सुन कर हर्षके साथ, शामके समय सौभाग्य और स्फूर्तिशाली भीमने पैरोंमें नूपुर पहिने, कमरमें करधौनी, हाथों में सुन्दर कंकण और हृदयमें हार पहना । कानों में कुण्डल पहिने और मस्तकमें तिलक लगाया। नेत्रोंमें कज्जल लगाया और सिर पर दीप्तिशाली चूडामणि गूंथा । इस प्रकार दिव्य वस्त्राभूषण आदिके द्वारा उसने अपने आपको खूब ही अलंकृत किया। वह बिल्कुल ही सीमन्तिनी-सौभाग्यवती-स्त्रीके जैसा ही बन गया। उसको देख कर ऐसा भ्रम होता था कि वह रति है या इन्द्राणी, अथवा पृथ्वी पर अव तरित हुई लक्ष्मी ही है । इस प्रकार लोगोंको भ्रम पैदा करता हुआ भीम झपाटेके साथ संकेत-स्थान पर पहुंचा । निर्भय भीम वहाँ क्षण भर बैठा ही था कि उधरसे द्रोपदी पर निछावर हुआ कामसे जर्जरित हृदय दुष्ट कीचक भी वहीं आ गया । उसके हृदयमें रागकी उत्कटता और गाढ अँधेरा इतना व्याप्त • हो रहा था कि उसके मारे उसे उस समय कुछ भी भान न हुआ । उसने उसे सचमुच ही द्रोपदी समझा । अतः वह उसकी ओर आगे बढ़ा और उसने उसका हाथ पकड़ा । इसके बाद ही वह हाथकी कगेरताका अनुभव कर बडे सोच-विचारमें पड गया । उसे जान पड़ा कि वह द्रोपदी नहीं है, किन्तु कुछ छल है । और कोई दुष्ट धूर्त ही इस द्रोपदीके वेषमें आया है । देखू, आगे क्या होता है । एक बात और याद पडती है कि एक समय नैमित्तिकने कहा था कि कीचककी मृत्यु महाबली भीमके हाथसे होगी । जान पड़ता है कि उसका कहना बिल्कुल ही सच्चा है । यह सोच करके उसने अपना हाथ उसके हाथसे छुड़ानेका यत्न किया, पर वह उसे नहीं छुड़ा सका । फिर क्या था, वे दोनों हाथ-पैरोंके प्रहारोंके द्वारा निर्दयता-पूर्वक परस्परमें युद्ध करने लगे । क्रोधके मारे उनकी ऑखें लाल हो गई। वे अपने अपने ओंठ और दॉत पीसने लगे। पसीनेकी बूंदोंसे उनका शरीर चमकने लगा । इस समय उन दोनोंका 'इतना भयंकर युद्ध हुआ कि उसे देख कर डरपोक कायरों के प्राण पखेरू ही उड़े जाने लगे । अन्तमें भीमने हुंकार नाद करके कीचककी छातीमें एक वजके आघात जैसा हाथका ऐसा प्रहार किया कि वह धड़ामसे पृथ्वी पर गिर गया और उसके शरीरकी सब हड्डियों चटक गई। इसके सिवा भीमने उसकी छातीमें
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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